Roman Verma ( रोगी )   (अनकही बातें)
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Joined 7 February 2019


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1 NOV 2023 AT 22:56

जन्मों पुराना 'व्रत' हूं
मैं तुम्हारी अंजुरी से पी लूं जल दो 'घूंट'
त्योहार हो जाए समस्त 'जीवन' मेरा
🧡❤️

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20 OCT 2023 AT 9:50

कुछ हसरतें हैं जो सुबह होते ही दिल पर हावी हो जाती है यहां तुम्हारे बिना मैं मायुस हो गया हूं
एक ख्वाहिश फिर जगी है तुम्हें देखने की भविष्य भी मेरा धुंधला गया है तुम्हारे प्रेम के आगोश में वैसे युं तो रो देना बहुत आसान होता है पर नम आंखों से मुस्कुराना बहुत मुश्किल होता है

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17 OCT 2023 AT 7:00

सुबह के वक़्त मन सबसे ज्यादा शांत होता है खासतौर पर तब जब पेड़ों के बीच ठंडी हवाएं आपके जिस्म से होकर गुजरती है कभी-कभी कुछ बातें कुछ भूली धूल जमी यादें कैसे अचानक याद आ जाती है
जेसे अब वो किसी और की सुबह में फूल सी खिलती है
इधर मैं उसकी याद में आज फिर एक सुबह लिए बैठा हूं
खैर! आईने के सामने खड़ा में खुद को देख रहा हु और खुद से हर दिन की जेसे एक वादा कर रहा हु
बाहर मम्मी चाय के लिए बुला रही हे और समय भी हो गया हे जाने का

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16 OCT 2023 AT 22:05

रात के 10 बज चुके हे और में अकेले छत पे बैठ कुर्सी को झुका के तारों की तरफ देखते हुवे सोच रहा हु रात कितनी अकेली है न खमोश, बिल्कुल स्थिर सी हर कोई सो रहा है या कोई मेरी तरह सोने का नाटक कर रहा है कोई खिड़की पर बैठे आसमान निहार रहा कोई छत पर किसी से बातचीत कर रहा
शायद मेरे हिस्से में वो रात आई ही नहीं
जहाँ मैं सुकून से सो सकूँ या रो सकूँ।
खेर! अपना अस्तित्व ढूंढना हो तो शांत रात में काले आसमान के नीचे बैठकर तारों को निहारो

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16 OCT 2023 AT 10:51

प्रत्येक वर्ष के भाँति इस नवरात्री में भी उसे शुभकामनाएं न दे सका
खास दिनों एवमं त्यौहारों पर उसकी स्मृति दूगनी हो जाती है
माता रानी के सामने भी पहली दुआ उसकी खुशी के लिए ही होता है
कहीं रोड किनारे हाथ मे चाय
लिए उसकी तस्वीरों को देख उसे
नवरात्रि विश करना आज
भी नही भुला

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12 OCT 2023 AT 21:39

देखते-देखते इस वर्ष के नो महीने बीत गए अगले चार महीने त्योहारों में बीत जाने हैं समय का प्रवाह इतना तेज़ है कि मैं स्वयं को कहीं दूर असफलताओ और अंधेरों के दलदल में धँसा देखता हूँ बन्द कमरे में रहते हुए समय, महीने, साल बदलते देखता हूँ और खुद को वहीं पाता हूँ जहाँ से सबकुछ शुरू हुआ था अब आशावान, धैर्यवान बनना मेरे वश की बात नहीं ऐसा प्रतीत होता है मेरी आत्मा तटस्थ हो चुकी है इसके सारे भाव मर चुके हैं इसे अब जीवन से अधिक मृत्यु आकर्षक लगता है

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12 OCT 2023 AT 21:01

औकात से बड़े सपने हमें भर-भर के तकलीफें देती है मस्तिष्क अवसादों में डूबा होता है नकारात्मकता तो मानो हर वक्त माथे पर मंडरा रहा होता है। धैर्य, साहस और निरन्तरता जवाब दे जाता है एक छोटी असफलता पर्याप्त होती है मनोबल तोड़ देने को कभी-कभी लगता है काश कोई छोटा सपना देखा होता
खैर ! हर कोई अपनी बर्बादी स्वयं लिखता है यहां किसी की कोई औकात नही किसी को बर्बाद करने की

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12 OCT 2023 AT 20:51

पुरुष बहुत भुल्लकड़ है
वह तुरन्त भूल जाता है कि माँ के अलावा इस संसार मे कोई भी स्त्री उससे प्रेम नहीं करती केवल चुनिंदा रुचि और पारस्परिक अनुभूति के कारण ही हम अनजान स्त्रियों के संपर्क में आते हैं
उसका भुगतान हम अपने माँ को आँसू और खुद को अंसख्य असहनीय दर्द देकर करते हैं

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12 OCT 2023 AT 20:44

उसका किया गया अपराध आज भी मेरे अपनो के मुंह पर मेरे प्रति तानों की एक माला के समान है चाहे में कुछ भी अच्छा करू उन्हें बस वही सब बाते करनी है जिस से मेरी ओकात दिखे
बल्कि में सब कुछ भूल ना चाहता हू
खैर! में एक बंद कमरे का राजा हु
इससे अधिक मेरी कोई
ओकात नहीं है 🌻

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9 OCT 2023 AT 10:30

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स्वागत है
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