शीर्षक - सिर्फ़ तेरा हाथ चाहिए
विधा - कविता
मेरी किस्मत तेरे हाथ की लकीर में पाती हूँ
वरना यूँ ही नहीं तेरा हाथ मेरे हाथ में रब ने थमाया है
सम्भाल लेती हूँ खुद को गिरने से अक्सर मैं
वरना यूँ ही नहीं तेरे हाथ को कसके पकड़ती मैं
आदत बनगई है थाम तेरे हाथ रात सोने में
वरना यूँ ही तो नहीं होती मीठी नींद तेरे सपनों के
भरती हूँ माँग अपना रोज़ तेरे ही हाथों से
वरना यूँ ही नहीं झलकती सौंदर्यता मेरे श्रृंगार में
कुछ तो अहम बात है इस गठजोड़ का शादी में
वरना यूँ ही नहीं ये रस्म बनाई होती वेबजह ईश्वर ने
- रोजा साहू ✍️
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