है सरापा ज़िंदगी का सार वेटिंग लिस्ट में
इक टिकट कन्फ़र्म है तो चार वेटिंग लिस्ट में
इस सदी के नौजवाँ का हाल बस इतना सा है
नौकरी वेटिंग में है और प्यार वेटिंग लिस्ट में
भोगकर देवत्व देवों के ही वंशज तज गए
आदमी होता गया ख़ूँख़ार वेटिंग लिस्ट में
इक नज़र तो देख लीजे, इक इनायत की नज़र
मर रहे हैं आपके बीमार वेटिंग लिस्ट में
रख दिया कितनों ने सर टीटी के क़दमों में 'जबर'
हम सँभाले ही रहे दस्तार वेटिंग लिस्ट में
— रोहन कौशिक-
काँधों पे उठाकर इसे चल भी नहीं सकता
सर अपना किसी से मैं बदल भी नहीं सकता
एक ओर तो बेचैनियाँ हद तोड़ रही हैं
और जी है बिचारा कि मचल भी नहीं सकता
संजीदगी के ऐसे लबादे में कसा हूँ
नश्शा-ए-मसर्रत¹ में उछल भी नहीं सकता
1. प्रसन्नता का उन्माद
रख भी नहीं सकता तेरे क़दमों में सर इस बार
औरों के रखे सर मैं कुचल भी नहीं सकता
रहते हैं तिलिस्मात¹ भी कुछ देर तिलिस्मात
अब दिल तेरी सूरत से बहल भी नहीं सकता
1. चमत्कार (बहुवचन)
— रोहन कौशिक-
मक़्तल¹ समझ के आ गये महफ़िल को मुहतरम²
हर शेर चाहिए इन्हें सीने के आर-पार
— रोहन कौशिक
1. वध स्थल; 2. श्रीमान-
इस भीड़ में अब अपनी नज़र किसके पास है?
हैं सब किराएदार तो घर किसके पास है?
इक मातमी ये सोचके हँस-हँसके मर गया
पत्थर सभी के पास हैं, सर किसके पास है?
दुनिया हसीं नहीं प' मयस्सर सभी को है
ख़ल्वत¹ हसीन शय है मगर किसके पास है?
1. एकांत
हैरत है पूछने को भी आया नहीं कोई
इस बे-चराग़ शब¹ में शरर² किसके पास है?
1. रात; 2. चिंगारी
मिट्टी है, चाक है; मगर इक मसअला भी है
ये ढूँढ़ना है दस्ते-हुनर¹ किसके पास है?
1. हाथ का हुनर-
जिस मुसीबत में जान है प्यारे
किसको जीने का ध्यान है प्यारे
"हम भी मुँह में ज़ुबान रखते हैं"
ये भी अच्छा गुमान है प्यारे
इसका मेहनत से राब्ता न बता
अपनी-अपनी थकान है प्यारे
वो भी सादा है, हम भी सादा हैं
बस यहीं खींच-तान है प्यारे
मौत में कुछ लिहाज़ हो शायद
ज़िन्दगी बद-ज़ुबान है प्यारे
मुँह में आया जो बक दिया तुमने
क्या सुख़न पीकदान है प्यारे?-
1. श्रोतागण
मुझको चबा रहा है ये बरसों से रात दिन
जो शेर सामईन¹ नया मानते हो तुम
— रोहन कौशिक-
बढ़ जाते हैं दो-चार मसाइल, उसे कहना।
और कुछ भी नहीं इश्क़ का हासिल, उसे कहना।
वो जबसे वतन छोड़ के परदेस गया है,
होता है कोई जश्न न महफ़िल, उसे कहना।
ताउम्र सितमगर ही सितमगर न रहेगा,
पूरा भी हुआ करता है सर्किल, उसे कहना।
कहना उसे मैं याद बहुत करता हूँ लेकिन,
आकर न बढ़ाए मेरी मुश्किल, उसे कहना।
लाती है किनारे पे जो मौजों की शरारत,
वापस भी पटक देता है साहिल उसे, कहना।
देखा नहीं जाता जुदा होता हुआ कोई,
हाँ! इश्क़ बना देता है बुज़दिल, उसे कहना।
— रोहन कौशिक-
मेरी आँखों की फ़रमाइश बहुत है
सो हर इक शय में गुंजाइश बहुत है
यहाँ हर ईंट में जुंबिश बहुत है
मकाँ गिरने को इक लर्ज़िश बहुत है
हैं सातों आसमाँ ख़ामोश कितने
भले ही रात-दिन गर्दिश बहुत है
किसी को देखना भी कम नहीं है
कि जल जाने को ये आतिश बहुत है
करें आबाद कैसे दिल की बस्ती
कभी सूखा, कभी बारिश बहुत है
— रोहन कौशिक-
बज़्मे-जानाँ में जो आए हैं तो जाना कैसा
ज़ुल्म होता भी है तो शोर मचाना कैसा
चुक गया है जो जुनूँ फिर ये फ़साना कैसा
दश्त¹ से लौटने वाला है दिवाना कैसा
1. जंगल
हो अगर पाँव में मेंहदी तो समझ आता है
हैं तेरे पाँव में छाले, ये बहाना कैसा
जब कभी सोचते हैं, देर तलक हँसते हैं
हाय! हम देखने निकले थे ज़माना कैसा
कौन करता है 'जबर' छाँव को सहरा¹ में मनअ²
वो अगर हाथ पकड़ ले तो छुड़ाना कैसा
1. रेगिस्तान; 2. इनकार
— रोहन कौशिक-
आप तो ख़ूब समझते थे फ़साना दिल का
फिर भी पकड़ा न गया कोई बहाना दिल का
ख़ुश-नसीबी ही समझ मात भी खाना दिल का
बद-नसीबी है कभी काम न आना दिल का
अब दिमाग़ों की ज़रूरत है दिमाग़ों के लिए
किसलिए ढूँढ़ते फिरते हो ठिकाना दिल का
आप भी करते हैं दुनिया से शिकायत दिल की
आपने तो कभी कहना नहीं माना दिल का
इक शजर कटते ही जंगल का उजड़ना हाए!
एक दिल टूटते ही गुज़रा ज़माना दिल का
कब शरीफ़ों की दुहाई का असर होता है
कौन सुनता है 'जबर' शोर मचाना दिल का
— रोहन कौशिक-