Rohit Singh Raj   (अर्ध-क़लम)
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Resilience et adversity
Joined 14 January 2020


Resilience et adversity
Joined 14 January 2020
10 APR AT 22:46

धातु-रत्न की चाह में, तू धरती को चाट गया,
तूने भू को खण्ड कर, अब इसे भी बाँट गया।
सोने की लालसा में, तू बीज विष के बो आया,
जग की कोख उजाड़ीं , खुद को तू देव बताया।

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10 APR AT 22:23

कटते देखे वृक्ष सब, सूनी भई पहाड़।
बिन छाया के जल रहा, धरणी का अंगार॥

नदियाँ विष का पान करें, प्यासे हों जीवजात।
मानव की असत्य भूख, कर दे जग को घात॥

शिशु भूखे, संसाधन क्षीण, बढ़ती जाती भीड़।
संयम ही तो धर्म था, लोभ बना अब पीड़।।

माँसाहारी क्रूरता, बन गई अभिमान।
जीवों की यह वेदना, पूछे किससे प्राण॥

सीमेंटों का वन खड़ा, हरियाली पर वार।
गौधूलि के रँग नहीं, धूप सरीखा प्यार॥

रेय तत्व के लोभ में, छीनें धरती प्राण।
सांसे भी संकुचित हुईं, गरज उठे हैं धाम।।

अब भी समय शेष है, जागो रे इंसान।
विकास हो संतुलित सा, बचे धरा की जान॥

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9 APR AT 11:48

थोड़ी देर को दुनिया से रिश्ता तोड़ ले,
आँखों के समंदर में खुद को थोड़ा डुबो ले।
कल फिर चलेंगे तूफानों की ओर,
आज बस हवा की बाहों में खुद को बहा ले।

थक गया होगा दिल, चल कुछ देर चुप रह ले,
बिस्तर से लिपट कर अपनी सासों से बह ले।
हर जंग की नहीं होती तुरन्त ही जीत,

आज थकी पलकों को कुछ ख्वाबों से भरने दे,
चल आज ख़ामोश रातों से एक वादा सा कर ले,

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7 APR AT 12:20

शाम नहीं ढलती,
न कोई सूरज, न ओस की ठंडी बूंदें,
सिर्फ चलचित्र चित्रण वाली किरने ,
जो आँखों से आत्मा तक जलाती हैं।
जहाँ औरों की नकली मुस्कानें
हमारे सच्चे दुःखों पर भारी पड़ती हैं।
और रात... रात अब शांति की नहीं,
अब कल्पनाओं में भूमिका होती है।

और तब कोई पूछता है:
"कैसे हो?"
हम जवाब देते है
"Busy..."
जैसे ये कोई तमगा हो,
या कोई "पद्मश्री"।।

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30 MAR AT 20:51

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14 MAR AT 15:24

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14 MAR AT 15:20

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14 MAR AT 15:10

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1 MAR AT 15:00

To shattered barren scene of the ocean,
The wasteland mushrooming its portion.
And spirit becoming the virtue of hypothesis,
Oh the fuming summer noon,
You're the whistle of this genesis.

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15 FEB AT 11:27

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