मगरुर इस दुनिया को जब झुकाने निकले,
मेरे सारे तौर तरीके पुराने निकले।
बंद कमरे में दबाया आवारगी का गला हमने,
फिर घर से बाहर हम कमाने निकले।
बसाया शहर हमने तो खुदा चांद को किया मगर,
आंखे खुली तो सब झूठे अफसाने निकले।
और उस दिन अचानक ही वो चुप हो गया,
उस रात मेरी आंखो से कितने जमाने निकले।
इससे पहले ही मिलकर मिट्टी में खाक हो जाऊ मैं,
वो मुझसे कुछ मांगे और मेरे मुंह से बहाने निकले।-
Jb b koshish ki use likhne ki bs uska ishk hi meri... read more
किसी शहर के किसी मकान में बैठा हो,
या बन के अघोरी समशान में बैठा हो।
उसके तांडव से जग भयभीत होने वाला हो या,
शान्त चित्त अकेला कही ध्यान में बैठा हो।
तुम्हारे स्कूल में तुम्हारी क्लास में बैठा हो,
किसी बस में तुम्हारे पास में बैठा हो।
गलियां गलियां घूम रहा हों,
लिपटा राख में झूम रहा हो।
पकड़कर हाथ तुम्हारा सड़क पार करता हो,
या नुक्कड़ की किसी दुकान पे व्यापार करता हो।
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मन मुताबिक़ किसको क्या सिला देती है।
ये वो आग जो हर दिल को जला देती है।
बादलों में छुप छुप कर खूब बरसता है वो,
कमबख्त मोहब्बत आसमां को भी रुला देती है।
एक आरजू कि इस मर्तबा संभल जायेंगे हम,
एक उसकी आंखे हैं हर दफा हमको पिला देती हैं।
दिन तो बसर कर लेते है आवारगी में हम मगर,
कुछ यादें हैं रातों को दिल दहला देती है।
किसी रोज हवा बनकर तुझे छू कर गुजर जायेंगे,
हमारी रस्मे जला कर हमको हवा मे मिला देती हैं।
ओर ज़िंदगी को गर्दिशो में कभी सो ना सके हम,
सुना है मौत बड़ी गहरी नींद सुला देती है।-
मेरे घर से दूर मेरे मकान से आगे,
कोई और जहां होगा इस जहां से आगे।
बनकर कोई सितारा इशारा तो करते होगे आप,
या छिपे हों मुझसे इस आसमान से आगे।
यहां हर शख्स अपना है मगर अनजान सा है,
अब कदम चलते ही नही इस वीरान से आगे।
अव्वल दर्जे का खेल है तेरा ए जिन्दगी,
पल भर में निकल जाती है तू इंसान से आगे।
और हसरत-ए-मंजिल मे अंधे मुसाफिरों सुनो,
कोई मंजिल नहीं होती शमशान से आगे।-
यूं तो नहीं है कुछ भी खास मुझ में,
फकत सिमटे है चंद लम्हों के एहसास मुझ में।
हकीकत मैं जिंदगी को जिया है जिसमें,
जिंदा है आज भी वो क्लास मुझ में।
नामों से सजी वह मेज कीमती है कोहिनूर से भी,
फिर चाहे तो कितने हीरे तराश मुझमें।
क्लास के रिश्ते चिल्लाता ब्लैक-बोर्ड शांत सा है,
पीछे मुड़कर देखता हूं तो मिलता है हताश मुझ में।
विंकी,विशाल,नेहा, अपूर्णा,साहिल विनय सब मिलेंगे तुझे,
कभी फुर्सत निकाल और आकर तलाश मुझ में।
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खुद ही खुद मे संवर जाने के लिए,
क्या जलना जरूरी है निखर जाने के लिए,
सफर में टूटकर समेटे है हौसले हमने,
कोई छू दे तो तैयार हैं बिखर जाने के लिए।
समझौते में बेच दी थी जिंदगी एक दिन,
कदम फड़फड़ा रहे है अब घर जाने के लिए।
लड़ रहे हो खुद से तो जिन्दा हो तुम,
बाकी जीते है सब यहां मर जाने के लिए।
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दर्द भी दवा भी, जख्म भी मरहम भी.......
हा जिंदगी तू जिन्दा है मुझमें।-
क्या ये काफी नहीं की जलाए जाएंगे हम,
दफना दिए जाते तो फिर तन्हा रहना पड़ता।-
तेरी अनसुलझी मोहब्बत को पहचान दे ना सके,
ऐ मौत तेरे सजदे में हम अब तक जान दे ना सके।
अपने सीने मे दबाकर उफानो को भटकते रहे हम,
तुझे सांसों के सिवा कोई तूफान से ना सके।
बंद कमरे मे कागजों को बेदर्दी से मारते रहे मगर,
मेरे लफ्ज़ मेरे हाल ए दिल का बयान दे ना सके ।
जो घर एक मुद्दत मेरा से इंतजार कर रहा था,
उसकी देहलीज पर कदम कोई निशान दे ना सके।
इस शोर मे अपनी चीखो को दबाए रखा हमने ,
जो कर ना सके कभी वो जबान दे ना सके।
और माफ करना रूह तुझे खुद मे कैद रखा हमने,
हम जीते रहे जब तक तुझे आसमान दे ना सके।
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