ROHIT RANA   (Shudra_07✍️)
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Joined 15 April 2019


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Joined 15 April 2019
18 HOURS AGO

अपने सब राज़ खोलकर,
एक खुली किताब हो गया हूं,
कुछ नहीं बचा अब मेरे पास,
बंजर जमीन हो गया हूं,
कोई आकर बैठे मेरे पास तो देखे,
मैं कितना गहरा हो गया हूं।।

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18 HOURS AGO

बस इसी उम्मीद में‌ चल रहें हैं की,
वो नाराज़‌ है हमसे,
अगर उसका दुख बन गए होते,
तो खुद ही खुद से खत्म हो जाते।।

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27 APR AT 23:52

मैं आजादी के दौर का हूं, 
पर रहा गुलाम हूं, 
ना बच्चपन के खिलौनें मेरे थे, 
ना जवानी के खेल, 
उन्हें तो बस मैं उठा लाया था, 
किसी दुकानदार ने जिन्हें सजाया था ।। 

ना सोचा ना समझा
जो मिला सो जकड़ लिया, 
सपनें भी दूसरों से छीन के लाया,
दिल के खाली कोनों में जब घिरा अधेंरा, 
आंख खुली तब होश में आया, 
यह मैं किसका बौझ उठा लाया ।। 

बुनियादी सलीकों से अनजान,
ताउम्र गलत रहा,
दुनिया समझने वालों को, 
मैं दिल से समझाता रहा,
आजादी के दौर में
मैं गुलाम बनता रहा ।।

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25 APR AT 21:55

जिस्मों की नुमाइश में,
वो मासुमियत से अपना दिल लेकर बैठी है,
दौलत शौहरत‌ के बाज़ार में,
वो सादगी से अपनी सच्चाई लेकर खड़ा हैं,
पैमानों में फासले बस इतने ही हैं की,
दोनों ही इंतजार में हैं।।

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24 APR AT 21:31

मैं हर शख्स‌ का हूं,
बशर्ते कोई शर्त ना हो,
छिटके धागों को हजार दफ़ा गांठ लगा दूं,
बशर्ते धागों का रंग बदला ना हो।।

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23 APR AT 22:39

हल्की हल्की बारिश हैं,
कुछ बूंदें उसके चेहरे पर भी जरूर गिरी होंगी,
मुझे ठंडक दे रहीं हैं यह हवांए,
जरूर उसे छू कर आई होंगी।।

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22 APR AT 21:03

मेरे आसुंओं की हर बूंद कीमती है,
क्योंकि मैंने‌ हीरों की तरह छुपाई है,
मेरी रुह में सच्चाई है,
इसिलिए तो अपने आस पास इतनी खामोशी पाई है।।

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21 APR AT 21:50

मैं माफी चाहता हूं,
हर सच हर झूठ के लिए,
जो मेरा सत्य हैं,
उन तमाम किरदारों के लिए।।

मै हर दिन‌ को रोशन नहीं कहता,
हर रात‌ को अन्धकार नहीं कहता,
मैं माफी चाहता हूं,
मैं हर दिन एक सा नहीं रहता।।

आज उनका वफादार हूं,
कल तुम्हारा हो जाऊगां,
मैं माफी चाहता हूं,
मैं शायद कल बदल जाऊंगा।।

तमाम गुनाह है मेरे सर पर,
कुछ पुण्य भी कर जाऊगां,
मैं माफी चाहता हूं,
मैं इन्सान हूं यू हीं जी जाऊंगा।।

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18 APR AT 0:07

राधा रुप जो बनकर आए, 
कृष्णा जिसका होकर रह जाए, 
सीता सा जो‌‌ निभा जाए, 
राम सा जो बन‌ जाए, 
वही संस्कार प्रेम कहलाए।। 

मैं जब हो जाऊं बालक,
वो मां बन‌ चला आए, 
जब पांव जगे जमीन पर, 
वो बाप  बनकर थामने आए, 
यूहीं प्रेम‌ हमसे मिलने आए।। 

मेरी सुकून की नींदों में, 
वो स्वतंत्रता की छाया लाए, 
उलझे हुए विचारों में, 
वो गहरी नदी सी शांति लाए, 
प्रेम जो सच से मुलाकात करवाए।।

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20 MAY 2022 AT 0:45

पल पल रास्ता कट रहा है,
पर पिछे कुछ छूट रहा है,
फूलों के रंग समेट लिए,
पर खुशबू को न देख सके,
नदी के सुर में शांत थे,
पर प्यास ना बुझा सके,
बादलों को छू कर आ गये,
बस आसमां ना देख सके,
जो छूटा उसे मिल ना सके,
जो मिला उसे संभाल ना सके,
मंज़िलों की धुन में,
कई मुसाफ़िर निकलते गये,
पल पल कटते इन रास्तों में,
कई पल छूटते गये!!

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