ये बारिश की बूंदे और मन की बातें
दोनों बेधड़क, बेबाक गिर रहीं हैं
कुछ अनकही बातें बार बार बह रही हैं
नासमझ मन बार बार कुछ झूठ को ना जाने क्यों सच बनाने में लगी है
मौसम बदल रहा है पर नाजाने क्यों मन मानने को तैयार ही नहीं है
मन है की मैं भी मौसम की बातें मान लूं और मौसम की तरह मैं भी मौसम बन जाऊं,,,,,,,,,,,,,,,,
की ये बारिश की बूंदे और मन की,,,,,,,,,
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