❤️❤️माँ!!❤️❤️
जन्मदायिनी, जीवनसिंचिका,
प्रेम सुलभ ईश्वर है, वात्सल्यपुर्णिका,
धरा से पूर्व, श्रेष्ठतम, गर्भधारिका!
अवर्णनीय अलिखित पूर्णरूपेण,
अगाथ्य गाथा जीवकल्याणिका!
शब्द जिसकी व्याख्या कभी न पूरा करे,
कोशिश अधूरी फिर भी माँ का एक लाल करे!
जीवन जिस आंचल में थी शुरू हुई कभी,
उस छांव में लाऊं,
मेरी मां की कल्पित कोई भी हो,
खुशियों भरी दुनिया,
जो न होगी मातृ-ऋण का ब्याज भी कभी!
❤️❤️❤️Love you MAA❤️❤️❤️
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आज तक क्या क्या बचाने की कोशिश की है!
प्राण, धन, आत्मसम्मान, प्रियजन, धर्म और हर इच्छाएं,
क्या कभी कोशिश की है बचाने को,
इन सब की मूल पूंजी को,
क्यू उलझे हो अर्थव्यव्थाओं में,
जमीनों की लकीरों में,
कुर्सियों में, सियासत के कद्रदानों में,
न खत्म होने वाली भूख और सारी क्षुधाओं में,
इस महामारी की विनाशलीला में,
दौड़ती भागती सभ्यताओं में,
सबका जाना तय है,
तब भी भिड़े रहो फिजूलो में,
कभी तो इंसानियत बचालो,
सब याद भी कर पाएंगे
तभी ऐतिहासिक वसूलों में....!
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In a dark night,
Having a ray of hope & light,
Surrounding you bright,
Waiting a day delight,
Wishing sweet dreams & good night..
❤️
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एक मायावी जंगल,
जिसमें सब चाहते बस अपना मंगल,
बस भागा-दौड़ी आपा धापी,
दौड़ने की दौड़ में दौड़ती जिंदगानी,
बस कहने को है बचा इंसान,
बची है बस हैवानियत,
अंधेरों में दीपक सा कहीं,
बची है बस इंसानियत,
न हरियाली न सौहार्द न बचा प्राकृतिक,
है ये फिर भी राजधानी,
है उम्मीदें हज़ार कि होगा बस मंगल,
एक कंक्रीट का जंगल!!
"नई दिल्ली"
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संघर्ष ही जीवन है,
परीक्षाएं तो नाम की हैं,
युद्ध हर शांति की पहल है,
महाभारत हो या रामायण ,
परिणाम का भय किंचित व्यर्थ है,
जय हो या हो पराजय ,
कर्ण रहे हो या अभिमन्यु,
बस कर्म ही पूज्य श्रेष्ठ है,
आने दो वक़्त बहुरूपिए को,
हज़ार संघर्षों की परीक्षाओं में,
बस डटे रहना है अडिग निरंतर ,
निर्भीक हो अपने श्रेष्ठ के साथ,
हासिल तो सब होकर रहेगा,
जारी रखना है बस प्रयास!!
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चाँद से अलग हमारे पास भी एक नूर है,
दुनिया को लगता है बस एक ही कोहिनूर है,
हमारी भी एक दुनिया है,
जिसमें न चाँद, न उसका नूर,
न ही कोई कोहिनूर,
बस आप, आपकी मुस्कान - बाकी सारी बलाएँ दूर!-
'सिवान' जिसकी गाथा,
शायद ही कोई कह पाता ।
स्वतंत्र भारत का प्रथम नागरिक,
पुरा हिन्दोस्तां यहीं से पाता।
'सादा जीवन, उच्च विचार' ऐसे वाक्य में,
शायद ही कोई जीवन जी पाता।
लाल किला ताजमहल तक बिकवाने वाला,
'नटवरलाल' भी यही से आता।
क्या पढ़ा है अखबारों मे,
सुर्खियों मे हाशिये के अलावा,
ब्रजकिशोर भी थे 'मजहरूल हक' के अलावा
महाभारत के एक गुरु,
'द्रोणाचार्य'तो सुना होगा।
उनका भी कुछ शेष,
यहीं इसी सिवान मे पाया जाता।
'सिवान' जिसकी गाथा,
शायद ही कोई कह पाता।-
सब फैला है,
एक 'नियति' के तले,
अनिश्चिततायें भरी पड़ी है,
निश्चितताओ के तले!
भरोसे मे ही सब खड़े या टूटे पड़े,
यूँ ही कायम रहे बस,
उम्मीदों से भरोसा न उठे!!-
एक छोटा-सा लड़का माँ के आँचल से बंधा था !
दुलार और प्यार से अलग तभी उसका पाला एक 'सर' से पड़ा था।
छड़ी और डाँट की डर से , उन्होंने अक्षर ज्ञान कराया था !
तब कही इस 'शिक्षक दिवस' के एक शिक्षक से मैं मिल पाया था।
अक्षर ज्ञान के नव बोध से ,
नैतिकता, इंसानियत और दुनिया थोड़ा समझ आया।
फिर मिलता रहा आशीष गुरुजनों का ,
तब ही जीवन में कुछ डिग्रियां जोड़ पाया !
मिट्टी के बर्तनों को जो कुम्हार के हाथो ने चिकनाया,
वैसा ही कुछ गुरुजनो से मुझमे निखार आया।
इस स्वर्णिम बेला पर उतना पर्याप्त नहीं ,
कि मैं बस उनका धन्यवाद का पाऊँ!
मेरे शिक्षकों- मेरे पथ के प्रदर्शक,समस्याओं के निवारक!
मैं क्या ही करूँ ?
आपके आशीर्वाद से मैं जिस पथ पर चलूँ,
आपके पद-चिन्ह छोड़ जाऊँ !!!-
यादों से बेहतर होता , यूँ भूल जाते हम बहुत कुछ ,
फंसे पड़े रूके से बेहतर होता , कम से कम चल तो पाते कुछ,
कलियाँ भले ही भरी हो याद-ए-गुलिस्ताँ में,
बेहतर होता कांटे तो कम हो जाते कुछ,
परछाइयों में तस्वीरे उकेरने से बेहतर होता, तस्वीरों में रंग तो बिखेर पाते कुछ,
भंवर में उलझने से बेहतर होता, लहरों में उड़ तो पाते कुछ ,
ये पत्थर अवरोधक है रास्तों की, बेहतर होता पत्थरों पर ही चल पाते कुछ ,
बीता जो भी सब कुछ "भूत" हो गया, बेहतर होता बदलाव तो लेकर आते कुछ,
यादों से बेहतर होता , यूँ भूल जाते हम बहुत कुछ .....-