माया से कोई नाता कहा आद़ंबर तुमको भाता नहीं,
सादगी की तुम मूरत हो ये चढ़ावा भी तुम्हें रास आता नहीं,
भोलेनाथ शायद इसीलिए हीं कहते है लोग तुम्हें,
राजा हो या हो दरिद्र भेदभाव कोई पाता नहीं ।
सृष्टि के तुम पुरख हो और तुम हीं हो संहारक भी,
मानवता का तुम हो उजाला और तुममें ही धधकती विध्वंश की ज्वाला भी,
हृदय को देख के तुम नायक और खलनायक बनते हो,
भक्त के लिए हो आशुतोष बने और पापी के लिए बनते हो भैरव भी।
लंकेश तो तुमने वरदान दिया और राम को भी तुम्हारा सहारा था,
तुमने ही जलंधर को जन्म दिया और तुमने ही उसको मारा था ,
आदि और अंत की अनंत परिकल्पना है तुममें बसती,
तुमसे ही हुई उत्पत्ति विष की और नीलकंठ बन तुमने हीं हलाहल धारा था।
आधे हो शिव तुम और शक्ति तुम्हें पूरा करती है,
पौरुष छलकता है तुमसे और तुममें ही बसी प्रकृति है,
आदिशक्ति और आदियोगी से मिलकर बने हो अर्धनारीश्वर तुम,
तुम ही हो पिता और मातृत्व की भी तुममें हीं आसक्ति है।
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मेरी खामोशी भी समझ लेती हो तुम,
मेरे हर भाव को परख लेती हो तुम,
तुमसे क्या हीं छुपा सका हूं मैं,
मुझसे ज्यादा मुझको समझ लेती हो तुम ।
हर गलती पर दाटा और हर अच्छे में साथ देती हो तुम,
जब भी गिरा हूं अपना हाथ देती हो तुम,
है मुझसे ज्यादा विश्वास तुमको मुझपर,
जब भी हुआ संशय खुदपर अपना आश्रय देती हो तुम ।।-
द्वंद अभी कहां पूरा हुआ,
खेल अभी भी जारी है,
एक प्रतिशत है वो युद्ध,
बाकी हजारों दिनों की तैयारी है।
जश्न का ये वक्त नहीं,
है मंथन आज की पुकार,
चंद पदक से क्यूं शांत हुई,
ऐसी भी क्या भुख मारी है।
होना चाहिए लक्ष्य बड़ा,
अगर विश्वगुरु भारत को बनना है,
रण उसे हल्दीघाटी का समझ लो,
ये धरा राणा जनना भुली ना है।
है भविष्य ओझल नहीं,
बस आज खड़ा हो जाना है,
सब खेलों में मिले विजय,
बस एक खेल को हीं ना आगे बढाना है।।-
जिस से था साफ़ किया,
वो खुद हीं मैला निकला,
हमें तो लगा था वो है बेगैरत,
लेकिन यूं धोखा देना तो उनका धंधा निकला ।-
क्या वो वक्त था जब पतंग उड़ाते और पत्थर गिराया करतें थे ,
दिन भर खेलते और रात को लोरी सुन सो जाया करते थे ,
था ना कोई भविष्य का बोझ ,
क्या वो वक्त था जब हम बच्चों की गिनती में आया करते थे।
नंगें क़दम गलिया घूम आया करते थे ,
जहां दिल चाहे वहीं रुक जाया करते थे , थीं नहीं कोई यारों की गिनती और भेद ,
था चंचल ये मन पानी जैसा जिसके साथ चाहे उनके साथ हीं गुल जाया करते थे ।
हंसी असली और पैसे नक़ली हीं काम लिया करते थे ,
चंद लम्हों से लाखों खुशियां चुरा लिया करते थे ,
था वो जिंदगी के सफ़र का पेहलु सबसे अच्छा ,
खुद पर मजाक हों फिर भी हम मुस्कुरा लिया करते थे ।
मैंले कपड़े और मन साफ़ हीं रखा करते थे ,
ना किसी के बुरे की चाहत सब के अच्छे के लिए ही दुआ करते थे ,
था नहीं कुछ तेरा और मेरा ,
सब को अपना और अपनों को हीं सब मान लिया करते थे ,
क्या वो वक्त था जब हम बच्चों की गिनती में आया करते थे।।
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भुलाना है आसान नहीं,
ना जाने कुछ आशिक कैसे भूल जाते हैं,
हमने तो जब भी भूलना चाहा ,
वो और ज्यादा याद आते हैं।
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केशव को भी ना मिल पाई राधा ,
क्या प्रेम किया था मैंने उनसे ज्यादा ,
खैर आसान नहीं प्रेम को तराजू में यूं तोलना ,
एक तरफ अश्क दुसरी तरफ ज़माना समां जाएगा।।-
इश्क धुंड रहे थे हम उनके अंदर
लेकिन उनके दिल में हमारा कभी बसेरा नहीं हुआ।-