**उम्मीद-ए-जवाब**
घुमोगे शाम-ओ-सहर, पर
मेरी गली से गुजरना पड़ेगा....
मेरा हक अदा करने के लिए
तुझको तो सँवरना पड़ेगा....
मंज़िलें रुसवा हो भी जाएँ
पर उम्मीद-ए-जवाब की
बेहतरी ही मुनासिब है...
काफ़िला चला है दूर तक,
एक हद तलक तो थमना पड़ेगा ...
और एक जहां ,तू ना समझे
एक जहां, मैं हवा हो जाऊँ...
इल्म है हर नजर का,
किरदारों से बेहतर तुझको
समझना पड़ेगा ।।
-Rohit Sharma
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