किसी के आँखों का मैं "तारा"
किसी के आँखों में "आवारा"
बस तेरी आँखों का सहारा ||-
Reader, Learner and Explorer
Started on 29/03/2k18
मुख़्तलिफ़ हुई हैं राहें,
अब पहले सी बातें नहीं होती|
जो मिलते थे बेवक़्त, एक-दूजे से कभी
अब वैसी मुलाक़ातें नहीं होती ||-
मंज़िल के तालाश में,
ज़िन्दगी की आस बाकी है|
हारे हैं ना जाने कितने जंग, पर
दिल में जीतने की प्यास आज भी बाकी है ||-
मैं रेत सा बंजर,
हुँ सागर सा गहरा,
हैं खुद से लगाए
उम्मीदों का पहरा
मैं छाँव भी हुँ
मैं धुप भी हुँ
इंसानियत की क्रूरता का
इक छोटा स्वरूप भी हुँ
मुझे जाती-धर्म से ढूंढों नहीं
मेरा वज़ूद ही मेरी पहचान है
जो दिन बीते मज़दूरी बिन
तो भूखी मेरी शाम है
मैं काली घनेरी रात सा हुँ
जले कोयले के ख़ाक सा हुँ
धधकती ज्वाला अंदर मेरे
किसी आग सा बेताब सा हुँ /migrant labourers\
मैं वक़्त की चाल हुँ
हालात से बेहाल हुँ
मैं श्रेष्ठ हुँ? मैं छिण हुँ?
या पोषित भ्रमजाल हुँ?
मैं आभावों में पनपता हुँ
शहरों की चकाचौंध में,
सबको नहीं दीखता हुँ|
जो प्राण हुए पखेरू मेरे,
तो राजनीतिक गलियारों में,
बन वोटबैंक मैं बिकता हुँ |||
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"राहें मुख़्तलिफ़ हुईं हैं,
अब पहले सी बातें नहीं होती,
जो मिलते थे बेवक़्त एक-दूजे कभी,
अब वैसी मुलाकातें नहीं होती ||"-
Dukaandar:- mere pass bechne ko kuch nhi so bech rha hun gaflat
Daal bahut mehangi hai so log kharid rhe hain nafrat
_Aamir Aziz-
कल तक उनके चौखट पर हम रोज़ दस्तक दिया करते थे,
आज उन्होंने अपना ठिकाना बदल लिया और हमें ख़बर भी नहीं..
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नहीं नहीं साहब..कुक थे उनके और अब बेरोज़गार हैं 😂
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