बंडावर नैतिकतेचा मुलामा चढवता येतं नाही
तो बंडच असतो थंड पडलेल्या अस्मितेचा!-
जो कामयाब हो?
वहीं कामयाबी की बात करेगा
जो नहीं करता बात
ये जरूरी नहीं की वो कामयाब हो
और जो सुनता हर रोज़ ये बातें
वो कामयाब हुआ है क्या?
सुनकर ज्ञान किसी और से
असलियत में दर्या पार किया है क्या
भैया जो कामयाब हो!
वहीं तो कामयाबी की बात करेगा.-
कुल मिलाकर सवाल क्या है
क्या करता हूं
कितना कमाता हूं
आगे का क्या सोचा है
क्या इसीको मैं तुम्हारा इश्क समझू!
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आता नाही झिरपत खोलवर भावना
वेदनांनी तळ गाठला असावा
लपवून ठेवलं होतं कमळ फुल मी हृदयाशी
दुर्लक्षित होताच नजर माझी
कोणी तरी लुटला असावा-
भरोसा रख खुद पर
कुछ वादे भी कर खुद से
मंजिल की छोड़ चिंता
तु राहों का यार बन-
थोड़ा बेहतर से ,
पत्थर होने तक के ,
सफ़र को ही शायद जीवन
यात्रा कहते है!-
मेरा कलम किसका गुलाम नहीं था कभी
लेकिन ये समाज और पेट की भूख!
उसे हमेशा बेबस बनाते आए हैं-
वो कहती थी , के
साथ रहेंगे हमेशा
बडी झुटी निकली यारों
वो हर बार , हमेशा की तरह— % &-
भाबडेपणा त्याने कधीच सोडून दिलं असावं ?
त्याशिवाय का त्याची चर्चा झाली
शहाण व्हा हुशार बना असं सतत शिकवणाऱ्या लोकांनीच सध्या त्याच्या प्रगत वाटचालीवर आक्षेप घेतला.-
पहले होती थी प्यार भरी बातें ,
अब बाते होती हैं , जिनमे
प्यार नहीं होता!
पहले सुनते थे हम तुमको घंटो तक बिना पलक झपकाए ,
अब तुम्हारा हर रोज दीदार नहीं होता
पहले हमने सोचा था कुछ एक - दूसरे के लिए
अब सब एयरो - गेयरो की बात सोचते है
हमारी जिन्दगी का नजाने ये कौनसा दौर है ?
जैसे मानो हमारे प्रेम की नैया मच धार है
पहले...-