2 AUG 2021 AT 0:58

ईश्वर से प्रेम ही सच्चा प्रेम है

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2 AUG 2021 AT 0:34

ही तो चाहिए इस जीवन के समर में

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30 JUL 2021 AT 11:45

गूंगे ने जो गाथा गाई
बहरे ने उसे सुना है
बिन हाथ वाले ने ताली बजाई
अंधे ने उसे देखा है
बिन पैरों वाला भाग कर आया
ये गाथा पागल को भी समझ आई

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30 JUL 2021 AT 11:31

कहानियाँ खत्म नही होती
कहानियों को खत्म करने के लिए अक्सर
खूबसूरत मोड़ दिए जातै है

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30 JUL 2021 AT 11:25

जब वो हमें पढ़ना छोड़ देंगे
कसम है हम लिखना छोड़ देंगे

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30 JUL 2021 AT 11:17

हेम कौ सुमेर दान, रतन अनेक दान,
गज दान, अन्नदान, भूमि दान करहिं । [1]
मोतिनु के तुलादान, मकर प्रयाग-न्हान,
ग्रहन में कासी दान, चित्त सुद्ध धरहीं ।। [2]
सेजदान, कन्या दान, कुरुक्षेत्र गऊ दान,
इतने में पापनिं कौं नेकहूँ न हरहीं । [3]
कृष्ण केसरी कौ नाम, एक बार लीन्हें 'धुव्र',
पापी तिहुँ लोकनि के छिन माँहि तरहीं ।। [4]
- श्री ध्रुवदास, बयालीस लीला, जीव दशा (30)

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30 JUL 2021 AT 11:04

वो स्वयं ईश्वर की बनाई हुई सर्वश्रेष्ठ कृति है मगर
अपनी दोयम दर्जे की कविता ही उनको प्यारी लगती है
लिखा करते थे उनपर लोग अनोखी शायरियाँ मगर
अपनी आधी अधूरी शायरी ही उनको अच्छी लगती है
छोड़ दिया है जब से उन्होने औरों को पढ़ना
अब वो खुद को ही पढ़ पढ़ कर खुश हो जाया करती है
किसी से बात करना सुहाता नही अब उनको
अपनी टूटी फूटी गजल पर ही खूब इतराया करती है
"सम्पूर्ण है स्वयं में वो मगर
उसके भीतर की रिक्तता अब उसे खलती है"

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29 JUL 2021 AT 0:49

या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
"रसखान"

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27 JUL 2021 AT 20:51

एक ऐसी जगह रूक जाना
जहाँ हाँ या ना कहने से
किसी को फायदा हो या ना हो
मगर नुकसान ना हो

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25 JUL 2021 AT 11:31

महफिलों में नही हूँ मैं
तेरे आने की आस
मुझे वहाँ ले जाती है

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