Ruth
वो Ruth का रुतबा था,
कि थी ना ऊंची उनकी आवाज़
ना था कद उनका कुछ ख़ास,
पर उनके बुलंद इरादों के सामने
एक पितृतंत्र समाज हो रही थी परास्त।
वो Ruth की रुत थी,
जो निरंतर बहती हवाओं की तरह
ढीट पत्थरों पर अपनी निशानी छोड़ गयी।
एक शांत नदी की तरह
अपना रास्ता बना, दूसरों को नयी राह दिखा गयी।
ये Ruth की रूह है,
जो महामारी व पक्षपात से भरे इस दुनिया में भी
लायी है गैरों को एक दुसरे के करीब।
और दे रही है हौसला,
कि असली बदलाव आता नहीं है रातों रात,
पर मंज़िल की ओर ले जाती है हर छोटी जीत।
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