rohini _ bikers   (₹ " Vicky Singh" ₹)
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Joined 6 March 2020


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Joined 6 March 2020
21 MAR AT 22:01

अधूरी है अपनी कहानी ज़रा सी,
मोहब्बत बहुत है, जवानी ज़रा सी . . .

वो लैला नहीं है, मैं मजनूँ नहीं हूँ,
वफ़ादार है वो दीवानी ज़रा सी . . .

है इज़हार लब पर, निगाहें झुकी हैं,
मरा - सिम से होकर "र - वानी" ज़रा सी . . .

वो माज़ी मोहब्बत मिली थी खुशी से,
हुई बात आख़िर पुरानी ज़रा सी . . .

दगा - बाज़ उसको बनाया है किसने,
निगाहें चुरा कर मिलानी ज़रा सी . . .

मिलीं जान जब हैं नज़र से हिमाकत,
हुई चार आंखें मुलाखिब ज़रा सी . . .

फ़रेबी है "ग़ालिब" ये दुनिया यहाँ पर,
उछाले बहुत कुछ, छुपानी ज़रा सी . . . !

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3 DEC 2023 AT 16:30

क्यों मौत जिंदगी से आसान लगती है, क्यों हर चौराहे पर मौत की दूकान लगती है . . .

महँगे हुए जा रहे तमाम सामान यहाँ, सबसे सस्ती तो अपनी ही जान लगती है . . .

उम्र भर तलाशते हम वजूद अपना, भीड़ में खो गयी अपनी पहचान लगती है . . .

ख़त्म नहीं होता ख़्वाइशों का सिलसिला, खुशि हमसे अब तलक अनजान लगती है . . .

जिंदुगी बोझ हैं, या हम बोझ जिंदगी पर, आसमाँ लगे जमीं, जमीं आसमान लगती है . . .

नजर आता है हर शख्श भागता हुआ, दो कदम चलते ही अब थकान लगती है . . .

हर दोस्त अब अजनबी सा लगता है, सबके चेहरे पे झूठी मुस्कान लगती हैं . . .

हो गए हैं अकेले इतना इस दुनिया में, महफिलें भी अब हमको वीरान लगती है . . .

मीठी लगने लगी है बातें मौत की, ज़िन्दगी अब मुझे बद जुबान लगती है . . .

क्यों मौत जिंदगी से आसान लगती है . . . !

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16 JUL 2022 AT 17:30

स्याह रातों से बनाई है मैंने कलम की रौशनाई,
मैं अंधेरा भी लिखूं तो भाग्य के जुगनू टिमटिमाते है . . . !

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7 JUL 2022 AT 18:58

पल दो पल आकर मेरे संग बिताना तुम,
हो सके तो इस बरसात आकर ठहर जाना तुम . . .

हर एक बूंद आग की तरह है बरस रहा
तेरी इक झलक पाने को हूं मैं तरस रहा
है स्याह इतना कि फलक भी न दिख पायें
रात में ये चांद आसमां में न छिप जाएं
बन कर चांद मेरा फिर से चली आना तुम
हो सके तो इस बरसात आकर ठहर जाना तुम . . .

चंचल नदी सी तुम, में ठहरा किनारा हूं
मैं कल भी था तेरा, आज भी बस तुम्हारा हूं
ये जिस्म ही मेरा, बाकी सब तुम्हारा है
ये शब हैं तुझमें और तुझसे मेरा सवेरा है
निकल कर ख्वाबों से मेरे, अब चली आना तुम
हो सके तो इस बरसात आकर ठहर जाना तुम . . . !

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24 MAY 2022 AT 23:05

हमारी एक ही तमन्ना थी
कि तुम समझते हमें ,
और
अब ये तमन्ना भी ख़त्म कर दी तुमने . . . !

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24 MAY 2022 AT 7:30

कहां कहां से तुझको बेघर करूं में गालिब,
तू एक " सपना " है,
पर तेरे ठिकाने बहोत है . . . !

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22 MAY 2022 AT 10:01

महज़ खयाल तेरे . . .
मेरे मन के मौसम बदल देते हैं,

कभी " सपना " मुस्कुराहटों का,
और कभी आसूं भी हँस देते हैं . . . !!

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19 MAY 2022 AT 19:22

मैं लिख कर हर बार भूल जाता हूं ,
और एक ये शब्द है ,
जो हर बार याद रखते हैं तुम्हें . . . !

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18 MAY 2022 AT 19:20

ढल गया वो दिन " जब देखा था तुम्हें"
पर, ढला नहीं वो समा जब देखा था तुम्हें

नाराज़गी सारी तेरे " दस्तक " से दूर हुईं,
बेताब ही मुस्कुराया जब देखा था तुम्हें

चाहते तो तुममें " गुम हो जाते " मगर,
बड़े सलीके से पेश आए जब देखा था तुम्हें

बातों में क्या रक्खा है," तुम्हारा होना ही काफ़ी हैं "
कुछ नहीं कह पाए, जब देखा था तुम्हें

हम झूमें बड़ी देर तलक, " तेरे जाने के बाद "
गज़ब का था मौसम, जब देखा था तुम्हें

पाकीज़गी मतलब की " अब भी बाक़ी है मुझ में "
आरज़ू दिल की" तब " पूरी हुई जब देखा था तुम्हें !!

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4 MAY 2022 AT 22:14

हमारी तरसती निगाहों को गर ,
इस साल तेरी दीद हो जाती . . .
तो, हमें भी मुबारक, अब के इर्द हो जाती . . . !

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