माही , ज़िस लेहजे मे उतरते ही ओवर पें ओवर बैट बदलने लगे हो ना तुम,
मुझे पता है क्या अनकहे कहने लगे हो तुम.
यकीनन ही जिनहोने तुमहे मुकाम तक पहुचाने मे अपना हिस्सा निभाया ,
उनहे कामयाबी के हिस्से देने से आभार चुक नही जायेगा .
पर फिर भी जो हो पाता है किये जा रहे हो चुप चाप , निस्वार्थ .
जाने से पहले की गुस्ताखियां करने वाले तुम हो नही ,
चुप चाप किसी दिन अंधेरे मे गायाब पाऊंगा तुमहे !
ये जो ज़जबात है ना तुमहारे उनका आदी हो चुका हूँ मैi.
पता है पुछेगा कोई भी तो हँस के ना ही बोलोगे .
नही कहना है तो मत कहो , हम में उम्मीद ज़िंदा रखना भी तो तुमही ने तो सिखाया है.
पर इस बार पता है मुझे तुम जा रहे हो कोसो दुर.
वो क्या है ना, दिल ज़िस्म से खिँच के दुर निकालना चाहोगे तो दर्द सब ब्यान कर ही देगी!
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