जो कहती थी , ढूंढ़ लूंगा भीड़ में भी
मैं उसके शहर में,और उसे अंदेशा न था,
ता उम्र रह जाऊं ,जिसके बसर में
उसके चौखट से गुजरे ,फिर भी उसको अंदेशा न था।
खारिज करने चले गए उसके दावें,
दरवाजा खटखटाया, पर वो न था।
वक्त की गुरबत तो देखो,
कैसे बदलते हैं।
जो देख, पलक तले कभी मुस्कुराती थी,
आज महलों में भी होकर , महलों में न था।
इश्तेहार चिपकवा दी सारे शहर में,
मिला, मगर वो न था।।
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