जिस्पे खुद से ज़्यादा एतबार हो,
ऐसा कोई हमराज़ नहीं होता...
क्योंकि भरोसा अक्सर वोहि तोड़ता हे,
जिसका ज़ेहन में कोई ख़्याल भी नहीं होता !
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बनाने वाला भी हैरान था,
की क़ौन हिंदू और क़ौन मुसलमान था...
लाश की गंध ने फिर बताया,
ये मरने वाला तो बस ईक इंसान था...-
इस तारीख़ के मायने बरक़रार होते,
इस दिन के लिए सब बेक़रार होते,
आज ग़मों की जगहे आँखों से ख़ुशियाँ छलकतीं,
इस मुबारक घड़ी पे अगर आप साथ होते ।
पापा जी 😞-
कौन गुज़रे इन्सान को यहाँ याद रखता हे,
कौन लटकी तवस्वीरों को आके साफ़ करता हे,
रात दो रात बीत जाने की बात हे बस,
कौन बिखरे परिवार की फिर परवाह करता हे।
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ऐ आसमाँ पे चमकने वाले तारे,
ये देख बड़ी जल्दी भूल गए तुझे, जो तेरे अपने थे सारे...
कल तूझे आसुओं से रुखसत किया था जिस जिस ने,
वो आज ग़ैरों की महफ़िलों मे हें, जो तेरे घर के थे सारे...!-
तुझे मालूम था की अलविदा शब्द से नफ़रत हे मुझको,
और तुमने बिन कहे ही, इसे मुकमल बना दिया ।-
ज़ुल्फ़ों की लट खोल दो,
घटाओं का रुख़ मोड़ दो
सब बातें क़िस्मत पे मत छोड़ो,
आँखों से बातें बोल के,
मोहोब्बत ज़िंदगी में घोल दो ..।-
सता के मुझको -माफ़ी माँग लेते हो ,
रुला के मुझको -हँसी माँग लेते हो,
दूर जाना चाहूँ भी तो कैसे जाऊँ मैं तुमसे,
बता के अपना मुझको -ख़ुदा से माँग लेते हो ।
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दुश्मन से रिशता, हेवानियत तक,
दिलबर से रिश्ता - दीवानगी तक,
मज़्ज़हब से रिशता- जिस्मानियत तक,
दुनिया से रिश्ता- इंसानियत तक,
और माँ से रिश्ता - ख़ुदा की रूहानियत तक ।
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तपती धूप में चाँदनी छाओँ का छाता लगा रखा हे,
मेरी माँ ने अन्धेरों में भी, मेरे लिए एक रोशन रास्ता छुपा रखा हे ।-