चलते-चलते थक चुकी है।
सेकंड की टिक-टिक अब खर्र-खर्र
में बदल चुकी है,
एक मिनट पूरा होने में अब डेढ़ मिनट लग जाते हैं।
अगर कुछ सही है...तो वो है सिर्फ़ 'घंटा' !-
या फिर लगातार बीस सेकंड
तक ख़ामोश रहोगे?
उसके बाद एक लंबी सांस छोड़ोगे और
फिर किसी गाने की धुन बेमन से
गुन - गुनाने लग जाओगे?
वैसे तुम्हारी इस प्रतिक्रिया का मतलब भी 'न' ही है।-
ये तुम्हारा झूठ-मूठ का हाल चाल पूछना,
ये स्टोरी पर हार्ट्स से रिप्लाई करना,
ये दो मैसेज बाद कन्वर्सेशन कैरी
फॉरवर्ड न कर पाने का तुम्हारा हुनर,
ठीक है भाई, अब इतनी मेहनत मत करो,
हमने मान लिया कि तुम्हारी प्रायरॉटी लिस्ट में,
हम से पहले तुम्हारा ईगो आता है।
(जनहित में जारी)-
लैंडलाइन के ज़माने वाले दोस्तों को
क्योंकि उनके नंबर दिल की
मेमोरी में सेव होते थे,
मोबाइल मेमोरी में नहीं।-
आओ फिर से सीटी बजा कर घर से बुलाएं,
फिर से 5-5 रुपए जमा करके पैटीज पार्टी करें,
फिर से क्रिकेट में आउट हो जाने पर पूरे मैच में भसड़ फैला दें,
फिर से स्लिप मार मार के साइकिल का टायर घिस दें,
फिर से बारिश हो जाने पर अपनी अपनी छत पर नाचें,
आओ फिर से.........सबकुछ फिर से करें।
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तुम बदल रहे हो। तुम्हें कम दिखाई देने लगा है, तुम अब सुन भी नहीं पाते, तुम्हारी आवाज़ दूसरों तक नहीं पहुंच पाती। तुम मंद हो रहे हो, तुम्हारी संवेदनाएं ख़त्म होती जा रही हैं।
तुम बूढ़े नहीं हुए हो, 'सामाजिक' तौर पर निर्जीव हुए हो।-
अंधेरी रात, ट्रैफ़िक और कंस्ट्रक्शन का शोर, बड़ी सी क्रेन पर चमकती हुई लाल बत्ती, सामने से जाता हुआ एक बड़ा सा फ्लाईओवर, उमस भरी गर्मी में मंद मंद चलती हुई ठंडी हवा, इन सबको मेट्रो स्टेशन की मंज़िल से देखता हुआ मैं...... इस महानगर में अब बस ये ही नज़ारा सुकून देता है।
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इस शहर की अब एक ही फ़ितरत है,
लोग कम हैं, ज़्यादा नफ़रत है,
और तुम 'उनमें' से नहीं हो,
ये ही तुम्हारी ग़फ़लत है।-
कि हम तुम्हें चाहना कम कर दें,
लेकिन फिर भी हम इस चहचहाते
दिल में तुम्हारी चहलकदमी को
महसूस करते रहे।
('अनुप्रास' से अलंकृत प्रेम)-
दिल के किसी कोने में पड़े पड़े
सीलते जा रहे हैं। नमी सिर्फ आंखों
में ही नहीं, शायद थोड़ी बहुत दिल
में भी है।-