Robin Khanna  
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Actor and Writer
Joined 9 January 2018


Actor and Writer
Joined 9 January 2018
31 JUL AT 16:14

क्योंकि लोगों ने सुनना कम कर दिया है।
अब लोग सिर्फ़ कहते हैं, ऐसी बातें जो दूसरों को सुनने में अच्छी लगती हैं। सुनने वालों के कान उन्हीं मधुर बातों के अभ्यस्त हो जाते हैं, फ़िर थोड़े वक़्त बाद उनको अनसुना कर देते हैं।

इसलिए कुछ कहने की ज़रूरत नहीं क्योंकि लोगों.......

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13 FEB 2024 AT 19:48

चलते-चलते थक चुकी है।
सेकंड की टिक-टिक अब खर्र-खर्र
में बदल चुकी है,
एक मिनट पूरा होने में अब डेढ़ मिनट लग जाते हैं।
अगर कुछ सही है...तो वो है सिर्फ़ 'घंटा' !

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11 FEB 2024 AT 22:42

या फिर लगातार बीस सेकंड
तक ख़ामोश रहोगे?
उसके बाद एक लंबी सांस छोड़ोगे और
फिर किसी गाने की धुन बेमन से
गुन - गुनाने लग जाओगे?
वैसे तुम्हारी इस प्रतिक्रिया का मतलब भी 'न' ही है।

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27 AUG 2022 AT 22:38

ये तुम्हारा झूठ-मूठ का हाल चाल पूछना,
ये स्टोरी पर हार्ट्स से रिप्लाई करना,
ये दो मैसेज बाद कन्वर्सेशन कैरी
फॉरवर्ड न कर पाने का तुम्हारा हुनर,
ठीक है भाई, अब इतनी मेहनत मत करो,
हमने मान लिया कि तुम्हारी प्रायरॉटी लिस्ट में,
हम से पहले तुम्हारा ईगो आता है।
(जनहित में जारी)

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17 MAY 2022 AT 21:35

लैंडलाइन के ज़माने वाले दोस्तों को
क्योंकि उनके नंबर दिल की
मेमोरी में सेव होते थे,
मोबाइल मेमोरी में नहीं।

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15 MAY 2022 AT 21:41

आओ फिर से सीटी बजा कर घर से बुलाएं,
फिर से 5-5 रुपए जमा करके पैटीज पार्टी करें,
फिर से क्रिकेट में आउट हो जाने पर पूरे मैच में भसड़ फैला दें,
फिर से स्लिप मार मार के साइकिल का टायर घिस दें,
फिर से बारिश हो जाने पर अपनी अपनी छत पर नाचें,
आओ फिर से.........सबकुछ फिर से करें।

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12 MAY 2022 AT 22:13

तुम बदल रहे हो। तुम्हें कम दिखाई देने लगा है, तुम अब सुन भी नहीं पाते, तुम्हारी आवाज़ दूसरों तक नहीं पहुंच पाती। तुम मंद हो रहे हो, तुम्हारी संवेदनाएं ख़त्म होती जा रही हैं।
तुम बूढ़े नहीं हुए हो, 'सामाजिक' तौर पर निर्जीव हुए हो।

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10 MAY 2022 AT 22:37

अंधेरी रात, ट्रैफ़िक और कंस्ट्रक्शन का शोर, बड़ी सी क्रेन पर चमकती हुई लाल बत्ती, सामने से जाता हुआ एक बड़ा सा फ्लाईओवर, उमस भरी गर्मी में मंद मंद चलती हुई ठंडी हवा, इन सबको मेट्रो स्टेशन की मंज़िल से देखता हुआ मैं...... इस महानगर में अब बस ये ही नज़ारा सुकून देता है।

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26 SEP 2021 AT 10:01

इस शहर की अब एक ही फ़ितरत है,
लोग कम हैं, ज़्यादा नफ़रत है,
और तुम 'उनमें' से नहीं हो,
ये ही तुम्हारी ग़फ़लत है।

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23 SEP 2021 AT 22:26

कि हम तुम्हें चाहना कम कर दें,
लेकिन फिर भी हम इस चहचहाते
दिल में तुम्हारी चहलकदमी को
महसूस करते रहे।

('अनुप्रास' से अलंकृत प्रेम)

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