रणजीत "राष्ट्रवादी"   (रणजीत "राष्ट्रवादी")
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Joined 4 March 2021


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Joined 4 March 2021

निगहबाँ से अब तुम मेजबाँ हो चले हो,
लगाकर आग कहते हो हुआ ही क्या है।

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बड़ा मग़रूर होकर निकला था चाँद,
अपने ही शहर में गुमनाम हो गया।
ये वाकया था इक़ चाँदनी रात का,
जाने वो आज क्यूँ ईद का चाँद हो गया।

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लहू का हर इक़ कतरा तुम्हारे नाम का होगा,
ज़ख्म-ए-दिल से कोई काँटा निकालो तो सही।

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तेरी बेबसी को सनम मैं बखूबी समझता हूँ,
तेरी खामोशी, तेरी नब्ज-ए-दिल समझता हूँ।
तुझ'ही से रौशन हैं मेरे इन आँखों के चराग़,
तुझ'को शोला तुझ'ही को आतिश समझता हूँ।

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जरा सी बात पर लोग यहां मिजाज बदल लेते हैं,
हमने तो मुद्दतों से अपनी कॉलर ट्यून तक नहीं बदली।

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"जिंदगी के लिए"
मोहब्बत के मस'अलों में कई रातें गुजर गईं,
अब कुछ नया नहीं है तुझसे कहने के लिए।

इल्तेज़ा हो तेरे इश्क़ की सुकूँ मिले न मिले,
अब तेरी याद ही काफी है दिल'लगी के लिए।

बेजा गुरुर करते हो तुम हुस्न-ओ-शबाब का,
मुझे तो इश्क़ था तुझसे तेरी सादगी के लिए।

तुझको जाना,तुझे समझा, संग तेरे वादे किए,
इससे ज्यादा और क्या चाहिए जिंदगी के लिए।

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"अधूरी गजलें"
कई गजलें अभी तक अधूरी छोड़ रख्खे हैं,
तेरी यादों के पन्ने हमने कोरे छोड़ रख्खे हैं।

तुम जो आओ तो सुनाएँ दर्द-ए-उल्फ़त,
पीर गहरी है दिल ने समंदर संभाल रख्खे हैं।

खिल जाये गुल कोई इस उजड़े चमन में,
बागबाँ ने तो भ्रमर भी सयाने पाल रख्खे हैं।

आंख से नींद ओझल तो कब की हुई है,
फिर भी तस्वीर तेरी छुपाकर रख्खे हैं।

छोड़ दे घर भला क्या परिंदा भी शौक से,
हमने सदियों से खाली आशियाने रख्खे हैं।

अभी बाकी हैं तुमसे गुफ़्तगू की मौन अरदासें,
लबों ने लफ़्ज-ए-वफ़ा के तराने छेड़ रख्खे हैं।

कुछ तो समझा करो जानाँ बेबसी को मेरी,
तुम्हारे प्यार में हमने जमाने छोड़ रख्खे हैं।

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'कागज का टुकड़ा'
इक़ कागज का टुकड़ा भेजो अपने दिल के पन्नो से,
लिख दूँ सारी मौन सदायें जो भी दिल मे हैं मेरे।

अश्कों को स्याही कर दूं मैं कलम बनाऊं गेसू को,
बयाँ करूँ वो सारी बातें जो भी दिल में हैं मेरे।

पढ़कर ये जज़्बात हमारे तुम भी दिल की लिख देना,
पलट मुझे तुम वो भी लिखना जो छूट गया खत में मेरे।

समझ न पाये मौन अधर जो वह भी खुलकर बतलाओ,
और अंत मे इतना लिख दो तुम ही दिल मे हो मेरे।

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संभालो मुझे यारों अब अगर टूटे तो बिखर जाएंगे,
किस्मतें रुठीं तो गम नहीं कोई तुम जो रूठे तो किधर जाएंगे।

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हम तुम्हें भूल जायें ये मुमकिन कहाँ जानाँ,
हमारी मौत से पहले तुम्हारी याद आएगी।

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