रमेश कुमार राही   (रमेश राही)
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Joined 8 April 2018


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Joined 8 April 2018

प्रेमिकाओं के पाजेब की खनक
प्रेमियों के लिए सदा से सुकून भरा संगीत रही है

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कुछ किताबें बोलती है
जिन्हें देखकर लगता है
कि हम इन्हें पढ़ नहीं रहे हैं
यह हमें कोई कहानी सुना रही है

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उस लड़की को कई दफा देखा था मैंने
मगर आज देखा जो उसे तो यूँ लगा मुझे
जैसे महकता हुआ गुलाब हो कोई
उसकी मुस्कराहट लग रही थी ऐसी
मानो खिल रही हो गुलाब की पंखुड़ी हौले - हौले
हाँ ये मोहब्बत का मुकम्मल अहसास ही है
मगर हमें आएगा नहीं ये जताना कभी
हम तो मोहब्बत जानते हैं
ये नहीं जानते कि तुमसे मोहब्बत वाली
मुलाकात कभी होगी या नहीं

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इन आँखों से क्या-क्या मंजर देखे हैं मैंने
कई अपनों के हाथों में खंजर देखे हैं मैंने
अनगिनत नदियाँ मिल गई उनमें आकर
फिर भी सदियों से प्यासे समंदर देखे हैं मैंने

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दम तोड़ देता है इश्क़ उस मोड़ पर आकर
जब इश्क़ के नाम पर जिस्मों का सौदा होता है

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आपदा को अवसर समझने वालों
याद रखना जब खुदा कहर बरपाता है तो
रहम नहीं करता

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बस ये ख्वाब मुकम्मल हो जाए मेरी जां
तेरी शादी में सेहरा मेरे सर हो

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आजकल सबके हिस्से ये काम आया है
सबको बस अपना ख्याल ही रखना है

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बस इक वक्त तक चाहना था तुझे
फिर कुछ काम करना ना मुझे
कब तुझसे इश्क करना काम हो गया मेरा
इस बात की कोई खबर ही नहीं मुझे

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मोहब्बत तो दुबारा होगी नहीं हमसे
बस ये जिस्म है जो तुम्हारा हो सकता है

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