रजनीश झा   (@रजनीश)
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Joined 23 November 2017


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24 FEB 2022 AT 14:20

नींद एक मरहम है।
आराम है धोखाधड़ी;
चैन फिसली हुई घड़ी ,
जाने, कब किसको पड़ी!

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12 FEB 2022 AT 12:51

कवि को पढ़ते हुए
आज एक कविता पढ़ते हुए
कवि को पढ़ने लगा
कवि बार-बार कविता पढ़ा रहा था
ठीक वैसे, जैसे मैं लिख रहा हूँ।
अनारम्भात् वह गीता के पाठ का संदेश
कर्मबन्धन और नियत कर्मों का कर्मचारी
बना उड़ेल रहा था - त्याग और सफलता।

बहुत सोचने तक सोचा कि
सुंदर चीज़ें सुंदर दिखे
यह जरूरी तो नहीं!




रजनीश

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12 FEB 2022 AT 12:43

वसंत विहार

सर्द हवा थक गई  है मेरे  साथ चलते हुए
देखा है वसंत को भी जमीं पर पलते हुए
हवाओं का ये कैसा जोर है मदमाता सा
एक पत्ता भी निकलता है उछलते हुए

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23 DEC 2021 AT 23:38

जाना क्रिया ही तो है
व्याकरण का कोई ढोंग तो नहीं,
जाना एक नयी आशा है
जो आता है वह ठहरता नहीं

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23 DEC 2021 AT 23:35

आँखों में जो सपने पलते हैं वे महकते बहुत हैं
गर बैठे-बिठाये मिल जाय फिर चहकते बहुत हैं

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23 DEC 2021 AT 22:35

"कुछ देर यहाँ जी लगता है
कुछ देर तबियत जमती है
आँखों का पानी गरम समझ
यह दुनिया आँसू कहती है"

गोपाल सिंह नेपाली

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1 AUG 2020 AT 22:32

एक आँख से सपने नहीं दिखे
एक हाथ से पन्नों पर ,हाँ लिखे !

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31 JUL 2020 AT 0:31

एक सरल रेखा भी वक्र हो जाती है
जब तुम्हारे स्वप्न नींद में आती है

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27 JUL 2020 AT 21:39

पानी के बुलबुले हैंं ये सब,
उठे जो कभी फिर फूट जाते हैं ।
मादक रिश्ते यूँ ही नहीं टूट जाते हैं!

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19 JUL 2020 AT 22:39

मिट्टी गीली हो जाती है अक्सर बारिश की बूँदों से,
ये बारिश की बूँदें और गीली मिट्टी समेटती है मन के अनजान क्षितिज पर!

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