रजनी झा   (Rajani durgesh)
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Joined 12 September 2020


Joined 12 September 2020
17 OCT 2022 AT 19:53

बेजरूरत की चीजें


जानती हूँ मैं अपनी औकात,
पिंजरे की पक्षी की तरह हूँ,

सभी की बातों से रहूँ सहमत,
तो मैं कोहिनुर हीरा हूँ,
किसी की बातों से यदि हूँ असहमत,
तो मैं सबसे खराब हूँ,
यदि अपने मन की कहना चाहूं तो,
सबसे बड़ी स्वार्थी कहलाती हूँ,
ताउम्र करती रही सभी की खिदमत,
यदि अपने लिये कुछ सोचूं तो,
मैं इस धरा की सबसे बड़ी चतुर कहलाऊं,
मैं हूँ सबकी आंखों की किरकिरी,
वास्तव में मैं बेजरूरत इन्सान हूँ,
सबकी चतुरता को समझ कर भी,
मैं मूक द्रष्टा बनी रहूँ तो,
मैं अपनों के मध्य रह सकती थी,
मुख जब खोली तो दुष्टा कहलायी,
सच में पिंजरे की पक्षी ही सही हूँ।

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6 OCT 2022 AT 7:12

राम और रावण का युद्ध
व्यर्थ क्यों सोच रहे?
व्यर्थ क्यों भटक रहे?
राम और रावण का युद्ध है बंदे,
अन्त:करण में क्यों नहीं झांक रहे?
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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6 OCT 2022 AT 6:54

हाथ छुड़ा लेते हैं सब
जीवन मंत्र यही है,
यह कुछ पल की है ,
इसके गणित में न उलझो,
यह बहुत बड़ा तंत्र है।
किसी से न वैर रखो,
न किसी से प्यार करो,
हाथ छुड़ा लेते हैं सब,
किसी मुश्किल में आज़मा कर देखो।
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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28 SEP 2022 AT 16:32

फिर सोचा
कब तक यूं नफरत फैलाओगे ?
कब तक असत्य के बल पर राज करोगे?
ऐसा अन्याय देख दर्द होता है मुझे
फिर सोचा,
कब तक आखिर!भ्रम फैला बदनाम करोगे?
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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16 SEP 2022 AT 23:46

क्या क्या नहीं सुना?
क्या क्या नहीं सहा?
ये तो दिल ही जानता है,
क्या क्या नहीं झेला?
ऐ गम दोस्ती कर ले,
ऐ गम खुदगर्जों से कह दे,
तूं सखा है मेरा इसलिए
ऐ गम मैं जिन्दा हूँ,
ये अपनों को बता दे।

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16 SEP 2022 AT 22:32

क्या हम दुबारा मिलेंगे
पता नहीं हम फिर मिलेंगे कि नहीं,
अनिश्चय में है हम सब का जीवन
न सांसों का भरोसा है यहाँ
न धरा पर कब तक रहें,यह पता है
नहीं कह सकते हम कभी,
क्या हम दुबारा मिलेंगे ?
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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16 SEP 2022 AT 22:16

किसी का प्यार मुझको
अन्तर्मन ने पुकारा है,
अन्त:करण ने झंझोरा है
किसी का प्यार मुझको
बदल कर हमें,
जीवन में नव संदेश दे उकेरा है।
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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12 SEP 2022 AT 21:21

ज़िन्दगी एक सवाल है
इसमें जितना उलझोगे
उलझते ही रह जाओगे
आप सही कहते हैं
ज़िन्दगी अनबूझ पहेली है।
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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8 SEP 2022 AT 18:00


सारा डर चला गया

जब से आये हो तुम
तब से जीने लगे हम
सारा डर चला गया
जब से प्रेम देने लगे तुम।
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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7 SEP 2022 AT 8:57

तुमसे मुहब्बत क्या हुई

मैं सारा जग भूल गयी हूँ
मैं कहीं खो सी गयी हूँ
तुमसे मुहब्बत क्या हुई
मैं प्रमलोक में डूब ही गयी हूँ।
डॉ रजनी दुर्गेश
देहरादून

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