खुद का अस्तित्व पाती हूं। हर कहानियों के किरदार से मैं न जाने क्यों जुड़ जाती हूं। रहती हूं पिया के बिन पीहर में उसे जुड़े ख्यालों को पन्नो पर उतरती हूं। तेरी लिखी कहानियों में खुद का अस्तित्व पाती हूं।
प्यार में शायद ऐसा प्राकतिक तौर पे होता है प्यार में जिसे हम हाँ कहते है उसे मना करने यूँ आसान नही होता । मै भी नही कर पाई ना , और उसकी हर बातो में हाँ कहती रही। न जाने कब मै प्यार में कुछ हद को पार गयी और इक सम्बन्ध में बंध गयी थी।
कैसी जादू की छड़ी है ना ये प्यार भी… हतासा के सबसे अंधेरें कोनों में भी धूप का पंक्षी बनकर हमे रोशनी में खींच लाता है। शायद दुनिया में प्यार करने वालों… हमें समझने वालों …की कमी है वरना ये दुनिया उतनी भी बुरी नहीं है…!