कोई अच्छी खबर सुनाना
किस्से तो हैं
अब भी तमाम
बसे यादों में
पर बच्चे फुरसत में नहीं
और नौजवान लगभग हड़बड़ी में
सुनाए तो किसे जिंदगी का फसाना
बूढ़ा बरगद क्यों न हो उदास
कोई बैठता ही नहीं उसके पास
जब आता है कोई बीमार-लाचार
तो सुनाने लगता है अपनी गाथा
जिसमें दगा और बेईमानी का शोर
होता है बहुत ज्यादा, इतना ज्यादा
कि धैर्य को भी होने लगती है घबराहट
बीच-बीच में वह आगंतुक को समझाता है-
भाई दुख से कौन बचा रह पाया है
अब चलो फिर आना, कोई अच्छी खबर सुनाना
हां, ठीक कहते हो-तेजी से बदल रहा है जमाना...
- शैलेंद्र शांत
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