शाम होते ही दिल में कई हसरत होने लगती है
मेरे नाजुक अंगों में ढेरों हरकत होने लगती है
धधक उठती है प्रेम की ज्वाला मेरे रोम रोम में
बेपर्दा होकर पड़ी रहूं तेरे बाहों की आगोश में
करना वार मेरी गहराइयों में, होकर पूरे जोश में
आहोंं पे आहें मैं भरती रहूं, न आने देना होश में
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Erotica writer (Hindi)
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मुरझाई मेरी पंखुड़ियों को
अब बारिश की दरकार है
प्रेम रस की कुछ बूंदें छिड़क
फिर से इन्हें जीवंत कर दो
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मेरी नाजुक नाजुक पंखुड़ियों को
प्रेम रस से सराबोर कर दिया
कल रात इश्क की टकरार ने
मेरे अंग अंग को चूर कर दिया
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मेरे कोमल कोमल अंगों पर
बनकर कहर तुम ढह जाना
लावा सी तपती मेरी भट्ठी में
बनकर बारिश तुम बह जाना
करना घर्षण तुम जी भरकर
इसकी नर्म नर्म दीवारों में
मेरी आहोें में गूंज उठे कमरा
ऐसे हथियार चलाना दरारों में
भींच लेना मेरे उरोजों को
अपनी मुट्ठी में भर भर के
टप टप कर यौवन रस टपके
रखना योनि को ऐसे तर करके
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मेरे बेपर्दा मखमली जिस्म का,
तेरे बेपर्दा जिस्म से लिपटकर
मोम की तरह पिघल जाने दो!
बरस पड़ो मुझपे कहर बनकर,
बदन के एक एक कतरे को
टूट टूट कर बिखर जाने दो!
मेरी मखमली सी दरारों में,
अपनी सख्त जवानी को
आज फिर फिसल जाने दो!
ये इश्क कोई नया तो नहीं है,
आज रात फिर से खुद को
मेरे भीतर ही निकल जाने दो!
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मेरे गोल गोल उभारों से
तेरा रात भर खेलते जाना
मेरे नितंबों की साजिश में
तेरा हर बार फसते जाना
अच्छा लगता है...
गुलाब सी नाजुक पंखुड़ियों को
तेरा अपनी जुबान से सहलाना
आहिस्ता आहिस्ता मेरे जिस्म में
बिजलियां सी दौड़ते जाना
अच्छा लगता है...
मेरी गहराइयों में उतरकर
जिस्म का जिस्म से मिलाना
साथ साथ सिसकारियां लेकर
ज्वालामुखी बनकर फूट जाना
अच्छा लगता है...
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भिगा देना मुझको आज की रात अपनी मोहब्बत से
इस बंजर ज़मीं पर सदियों से एक बूंद तक न गिरी
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जब सफर शुरू हुआ उनकी सख्त
जवानी का मेरी दरारों में
मेरे भीतर का मौन टूटा और
फ़ूटने लगीं सिसकारियां हजारों में
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छेड़ दो मुझे जिस्म की बेहिसाब मोहब्बत से
सैलाब बनकर बहक जाने का इरादा है आज
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आसान नहीं है गहराई में उतर कर इश्क कर पाना
कितने ही लोहे पिघल यहां मोम बन जाया करते हैं
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