रिया   (Desire)
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Joined 3 May 2021


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Joined 3 May 2021
11 AUG 2024 AT 22:33

शाम होते ही दिल में कई हसरत होने लगती है

मेरे नाजुक अंगों में ढेरों हरकत होने लगती है

धधक उठती है प्रेम की ज्वाला मेरे रोम रोम में

बेपर्दा होकर पड़ी रहूं तेरे बाहों की आगोश में

करना वार मेरी गहराइयों में, होकर पूरे जोश में  

आहोंं पे आहें मैं भरती रहूं, न आने देना होश में


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11 AUG 2024 AT 9:36

मुरझाई मेरी पंखुड़ियों को

अब बारिश की दरकार है

प्रेम रस की कुछ बूंदें छिड़क

फिर से इन्हें जीवंत कर दो

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11 AUG 2024 AT 9:34

मेरी नाजुक नाजुक पंखुड़ियों को

प्रेम रस से सराबोर कर दिया

कल रात इश्क की टकरार ने

मेरे अंग अंग को चूर कर दिया

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10 AUG 2024 AT 17:31

मेरे कोमल कोमल अंगों पर

बनकर कहर तुम ढह जाना

लावा सी तपती मेरी भट्ठी में

बनकर बारिश तुम बह जाना

करना घर्षण तुम जी भरकर 

इसकी नर्म नर्म दीवारों में

मेरी आहोें में गूंज उठे कमरा

ऐसे हथियार चलाना दरारों में

भींच लेना मेरे उरोजों को

अपनी मुट्ठी में भर भर के

टप टप कर यौवन रस टपके 

रखना योनि को ऐसे तर करके

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10 AUG 2024 AT 9:53

मेरे बेपर्दा मखमली जिस्म का,
तेरे बेपर्दा जिस्म से लिपटकर
मोम की तरह पिघल जाने दो!
बरस पड़ो मुझपे कहर बनकर,
बदन के एक एक कतरे को
टूट टूट कर बिखर जाने दो!
मेरी मखमली सी दरारों में,
अपनी सख्त जवानी को
आज फिर फिसल जाने दो!
ये इश्क कोई नया तो नहीं है,
आज रात फिर से खुद को
मेरे भीतर ही निकल जाने दो!

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10 AUG 2024 AT 9:16

मेरे गोल गोल उभारों से
तेरा रात भर खेलते जाना
मेरे नितंबों की साजिश में
तेरा हर बार फसते जाना
अच्छा लगता है...
गुलाब सी नाजुक पंखुड़ियों को
तेरा अपनी जुबान से सहलाना
आहिस्ता आहिस्ता मेरे जिस्म में
बिजलियां सी दौड़ते जाना
अच्छा लगता है...
मेरी गहराइयों में उतरकर
जिस्म का जिस्म से मिलाना
साथ साथ सिसकारियां लेकर
ज्वालामुखी बनकर फूट जाना
अच्छा लगता है...


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7 AUG 2024 AT 0:36

भिगा देना मुझको आज की रात अपनी मोहब्बत से

इस बंजर ज़मीं पर सदियों से एक बूंद तक न गिरी

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7 AUG 2024 AT 0:19

जब सफर शुरू हुआ उनकी सख्त 

जवानी का मेरी दरारों में

मेरे भीतर का मौन टूटा और

फ़ूटने लगीं सिसकारियां हजारों में


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6 AUG 2024 AT 0:09

छेड़ दो मुझे जिस्म की बेहिसाब मोहब्बत से

सैलाब बनकर बहक जाने का इरादा है आज

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5 AUG 2024 AT 19:33

आसान नहीं है गहराई में उतर कर इश्क कर पाना

कितने ही लोहे पिघल यहां मोम बन जाया करते हैं

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