दिखता कुछ है, ज़िंदगी के अलंकार कुछ और कहते हैं
ना जाने किस मायूस कवि की लिखी हुई ये तक़दीर है— % &ना इधर के हैं हम, ना ही उधर के हैं अब तो,
क्या बताएं जनाब, दिल की हालत जैसे कश्मीर है— % &कलम, काग़ज़ और कायनात, तीनों हैं यहां लिखने को
ग़म भी बहुत हैं, पर हम निकले शब्दों के भी फ़कीर है— % &क्यों लिखे कोई शायरी अपने शब्द जोड़-जोड़कर
जब सारा आलम ही बिन कुछ करे करता तकरीर है
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