सुनो
तुम्हारे साथ बीती
उस पहली मुलाक़ात के बाद
मुझे ताउम्र इंतज़ार रहेगा
फिर एक बार
तुम्हारे साथ
उसी पहली मुलाक़ात का l-
मैं चाहता हूँ
तुम साथ रहो मेरे
ठीक वैसे ही
जैसे
रहती है रात्री
अंधकार के
सानिध्य में.
मैं चाहता हूँ
तुम प्रकाशित करो
मुझको
ठीक वैसे ही
जैसे
प्रकाशित करती है
भोर
रात्री को-
तुम अपनी कुल मर्यादा का
मान रखो
मैं अपने कर्त्तव्यों की
राह चलूँ
अब अलग अलग
सुख दुःख सहना है
सुनो प्रिये
अब चुप रहना है-
मैं स्वीकारती हूँ तुम्हें
जैसे रात्री
स्वीकारती है
चंद्रमा को
सहर्ष,
अपनी बाहें
फैलाकर
और भरते हो तुम
मद्धम
शीतल सा प्रकाश
मेरे जीवन में
जैसे रात्री की
कालीख
मिटा देता है
चाँद
अपनी स्वेत
प्रकाश तरंगो से ll-
सुनो जब सुलझाना
अपने बालों को
तो देखना
मेरा वो प्रेम
जो अटका है
तुम्हारी
उलझी सी लटों में कहीं
गिर न जाए
सुनो...
उतार लेना तुम उसे
और सहेज लेना
अपने ह्रदय के
किसी कोने मेंll-
हे ईश्वर तुम उस धरती पर
फिर कभी नही
पुत्री देना
कर देना बंजर
तुम समस्त भूमि
फिर वहाँ नही
उपवन देना
बिलख बिलख कर
मृत्यु को
प्राप्त वही प्राणी होगा
जिसने
फिर अब नारी की
मर्यादा को छीना होगा ll-
क्या मेघ वहाँ रोता होगा
क्या बंजर धरती को जोता होगा
क्या बारूदों की शय्या पर
कोई शव लेटा होगा..-
सुनो
उस रात
तुम्हें सुकून से
सोता हुआ पा कर
दूज के चाँद को देख
मैने भी थामा था
तुम्हारा हाथ
और तुम्हारे कानों के
समीप आकर
मैने कहा था
मुझे भी प्रेम है तुमसे ll-
मैं और तुम
चलो चलते हैं
उस युग की ओर
जहाँ
इतनी स्वतंत्रता प्राप्त हो
कि पकड़ सकूँ
मैं तुम्हारा हाथ
और रख सकूँ अपना सर
तुम्हारे कंधे पर-