मैं जो ना रहूँ तुम फिर भी रहना
कभी धूप बनकर तुम्हारी आँखों में चमक जाया करूंगी ,
कभी बारिश बनकर तुम्हे छू जाया करूंगी ,
कभी हवा बनकर तुम्हारीखुशबू ले जाया करूंगी
फिर चाहे तुम किसी और के हो भी जाओ
मैं जो ना रहूँ तुम मेरे ही रहोगे। ।-
Love is not love which alters w... read more
इस हैवानियत की पीड़ा
हर वो स्त्री महसूस कर सकती है
जिसने कभी किसी इंसान की खाल में
लिपटे भेड़िए की ललचाई नज़रों में खुद की तस्वीर उभरती देखी हो
इस हैवानियत की पीड़ा,
हर वो इंसान महसूस कर सकता है
जिसने बेटी जनी हो
इस हैवानियत की पीड़ा
हर वो इंसान महसूस कर सकता है
जो इन मासूम बेटियों में
अपनी बहन ,अपनी मां,
अपनी पत्नी ,अपनी दोस्त
की झलक देख पाने की
कल्पना शक्ति रखता हो
.....
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क्या फायदा हुआ ?
निर्भया के लिए दिखाए गए उस आक्रोश का,
निर्भया के दोषियों को दी गई फांसी का
क्या फायदा हुआ?
प्रियंका की आवाज़ बनने का
प्रियंका के दोषियों को सरे आम गोली मारने का
क्या फायदा हुआ ?
आज भी हर रोज़ एक नई निर्भया
राक्षसों को बलि चढ़ जाती है
आज भी किसी शहर के सन्नाटे में
किसी गांव के शोर में
किसी निर्भया की सिसकियां दम तोड़ देती हैं
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सोचा था ज़िन्दगी बदलेगी,
नए रिश्ते मिलेंगे
नई दुनिया होगी
हालांकि इस सब के लिए कभी तैयार ना थे
पर हालात भी अलग थे
चुनौती समझ के समझौता किया था
समय और समझ ने कभी ज़िन्दगी की
जद्दोजहद ख़तम करने का भी सुझाव दिया
पर दिमाग कमज़ोर नहीं था ,
सम्हाल लिया ,
या शायद कुछ चेहरे थे जिन्हें लंबे समय तक
देखते रहने की चाहत ने दिमाग की ताकत वाली
टॉनिक का काम किया।
To be continued..
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घूंघट....
मोहब्बत हो गई है तुमसे
तुम्हारी एक बात हर पल मुझे ताकत देती है
आंसू कितने भी हों ,तुम छुपा लेते हो ,
पहले आंसू गर छुप भी जाते थे तो आंखे बता देती थी कि दिल में तूफान उठा था ,
अब आंखों को भी नया साथी मिल गया है ,
शुक्रिया तुम्हारा
और तुमसे नफरत के लिए माफी....-
अपनी हद से ना गुज़रे कोई इश्क़ में
जिसे जो मिलता है नसीब से मिलता है।
(Copied)-
पागल कुत्ते का वध करना मजबूरी है,
गद्दारों को फांसी बहुत जरूरी है
- राजेन्द्र प्रसाद मिश्रा-
ज़िंदगी खिलवाड़ है
इस खेल में शामिल हूं
किसी ने कहा तो नहीं
पर शायद इसी के काबिल हूं
लगता था तुझसे अलग होके
सिर्फ मौत ही है आगे
गर कहूं कि ज़िंदा हूं
तो गलत नहीं हूं
मैं तुझसे अलग नहीं हूं।
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तेरा एहसास साथ हो तो
चलना आसान लगता है,
तेरा चेहरा नज़रों में हो तो
हंसना आसान लगता है,
यूं तो दम घुटता है हर पल
पर तुझे खुद में समेट कर
जीना आसान लगता है
गर कहूं कि बदली नहीं मैं
वही हूं ,तो ग़लत नहीं हूं ,
मै तुझसे अलग नहीं हूं।
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कड़वी हूं थोड़ी सी क्या करूं
सच क्या है ,झूठ क्या है
सही गलत के बीच दीवार कितनी ऊंची है
जानती हूं
पर गिरा नहीं सकती क्या करूं
उलझती हूं जिन बातों पे
उनकी गहराई जानती हूं
जिनसे प्यार है उन्हीं को तकलीफ देना ग़लत है
जानती हूं
पर शब्दों से समझौता नहीं कर पाती
क्या करूं
सूरज ढलने तक की सीरत खूबसूरत है मेरी
ये शब जो शक्ल देती है मुझे
बदसूरत है, जानती हूं
पर ये मुखौटे नहीं उतार सकती क्या करूं
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