Ritu Verma   (ऋतु वर्मा)
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Joined 26 November 2021


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Joined 26 November 2021
25 JUN AT 18:38

न जाने ये मन क्यों इतना उलझा रहता है..
जानता है वास्तविकता क्या है?
पर उसे स्वीकारना क्यों नहीं चाहता है?
मन के इस कशमकश में
एक व्यथा सी रहती है,
सच से अवगत होते हुए भी
वो बातें इतनी क्यों चुभती है?
मन के इस कोलाहल में
इतनी भीड़ क्यों रहती है?
दिल और दिमाग के द्वंद्व
में सब कुछ उथल-पुथल सा लगता है,
लगता है कोई पीड़ा नहीं जीवन में
फिर क्यों इतना दर्द सा रहता है?
सब कुछ है जीवन में फिर भी
क्यों रिक्त सा लगता है?
कभी-कभी सच को स्वीकारना
इतना कठिन क्यों हो जाता हैं?
माना कि सब बीत चुका है फिर
वो आज में हावी क्यों हो जाता है?
जब भी जीवन में लगता सब ठीक हो रहा
कुछ बीती बातें इतना दर्द क्यों दे जाता हैं?
जीवन में सब रंग आते-आते अचानक
सब बेरंग क्यों हो जाता हैं।




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19 JUN AT 9:36

जीवन में सब कुछ बिना मन के होता है,

मन का होता है तो सिर्फ अवसाद।

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1 MAY AT 1:35

पर हर ओर अंधेरा रहता है,
बीते हुए लम्हों के जीवन में
हर पल पहरा रहता है,
मिलते है जब हम एकांत में
खुद से तो सामने धुंधली साया सी
एक बिम्ब नजर सा आता है,
फिर नजरों के सामने मानों
पुनः सब स्थिर हो जाता है।

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29 APR AT 21:05

वर्तमान पीढ़ी का बदलाव ही
आनेवाली पीढ़ी को एक
नई रोशनी दिखाती हैं।

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25 APR AT 22:59

मनुष्य के जीवन में हर क्षण
कुछ न कुछ पीछे छूट जाता है..
बस नहीं छुट पाता है...
तो वह है विवशता,मोह,नेह और उम्मीद।


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20 APR AT 17:07

असमंजस पूर्ण होता है
चाहता तो है सब कुछ पाना
पर मुश्किल का सामना
नहीं करना चाहता हैं।

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20 APR AT 12:27

किसे खबर होता है ग़ालिब
सफर कहाँ तक है?
अक्सर जहां हम सोचते
कि सफर खत्म हो गया
दरअसल वास्तविक सफर की
शुरुआत वही से होती हैं।

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14 APR AT 11:57

एक दौर जीवन में कभी
ऐसा भी आ जाता है,
सबसे अजीज रिश्ते से
दूरी बनानी पड़ती है,
मन चाहता है..
उस मोड़ पर रुकना
पर नियति दूर ले जाती है,
समझ नहीं आता सही-गलत
बस हम उसमे शामिल हो जाते है,
भाग्य को शायद यही मंजूर है
य़ह सोच कबूल कर जाते हैं।

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13 APR AT 20:58

इश्क का दर्द भी
बड़ा अनोखा होता है
टूटा हुआ तो कुछ नहीं दिखता
पर दर्द बड़ा गहरा होता हैं।

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11 APR AT 14:56

प्रेम में हर क्षण मैं तुम्हारी
वो साथी बनना चाहुँगी..
जब सभी जगह से
थक हारकर तुम आओ तो
मैं सुकून बनना चाहूँगी।

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