कुछ चेहरों से नक़ाब ऐसे निकले कि,
जिन्हें देख दिल की सारी हसरतें मिट गईं...
कुछ दर्द दिलों पर ऐसे उभरें,
जिन्हें महसूस कर जीने की आरज़ू ही मिट गई...
न लफ़्ज़, न ख़ामोशी, न बेचैनी, न सुकून,
न तमन्ना, न बगावत, न हुस्न, न इबादत,
ग़म की हर शब ऐसी गुज़री कि,
इश्क कामिल हो मेरा, ये बात ज़ेहन से मिट गई...
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