अजीब सा मिज़ाज हो गया है हमारा
महफ़िल में सिमट से जाते हैं
तन्हाई में बिखर से जाते हैं...-
और एक दिन ऐसा आएगा
जब हम मयखाने से निकलेंगे
और पूरी दुनिया बोलेगी -
आखिर इसे होश आ ही गया-
वो जो दफ़न हो गए हैं ख़्वाब कितने मेरी आँखों में
ये पलके उग आयी है उनकी कब्रों पर घास की तरह...-
जलाई थी जिन आँखों से ख्वाबों की आग हमने
उन ख्वाबों के धुएं में ही अब आँखें जला बैठे हैं हम…-
बीज को है उम्मीद तुमसे
धरती को है प्यास,
मनुष्य को है चाह कईं
पंछी को परवाज़,
प्यारे बादल!
तुम बरसना
फुहारें-रिमझिम-झमाझम
या मूसलाधार,
बस तुम फटना नही,
इस संसार का
छोटे से बड़ा हर जीव
तुमसे आशा करता है
नए जीवन की,
तुम कहर न ढा देना....
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सारी भूमिकाओं को
त्याग कर
वह मात्र स्त्री होना चाहती थी
इसलिए उसे
माता पत्नी बहन बेटी मित्र
सब होना पड़ा...-
इस दुनिया की
अधिकांश स्त्रियां
इसलिए भी कुंठित होती हैं
कि पहले उनके स्थान पर
रह चुकी स्त्रियां
भूल जाती हैं वह दर्द
जो वो झेला करती थी कभी...-
जरूरी नहीं कि हर बार जंग लगने से लोहा कमज़ोर ही हो,
कुछ दरवाजों के ताले इसलिए भी नहीं खुलते
क्योंकि उन्हें जंग लग जाती है...-