Ritu Prakash Verma   (Ritu Verma)
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Joined 27 February 2018


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16 JAN 2022 AT 13:23

ग़लती तुमहारी थी या हमारी
उससे.......
क्या ही फ़र्क़ पड़ता हैं,
खोने के बाद
तो.....
रोयीं सिर्फ मैं ही।।

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14 JAN 2022 AT 13:54

कुछ चीज़ें ऐसे पीछे छूट जाती
जैसे सारी वजूद ही मिट गई हो

कुछ बातें,कुछ यादें,कुछ एहसास
बस रह गयी।

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4 SEP 2021 AT 20:40

ज़िंदगी......
बिना थमे, बिना रुके
सफर कर रहीं।

ओर.........
हम बस ख्वाहिशें लिए अभी
भी वही खड़े हैं।

सफर.....
की खूबसूरती को भी
किनारें से ही देख रही।

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24 JUL 2021 AT 21:27

ज़िन्दगी में कभी भी गलती से भी गलती करने की गलती मत करना।
गलतियाँ सिर्फ आपको ही बर्बाद करती हैं।

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21 JUL 2021 AT 13:37

अजीब सी कशमकश भरी सी हो गई हैं ज़िंदगी
उलझनों से भरी इस दीवारों के बीच दबती चली जा रहीं मैं।

न तुमसे दूर रह सकती
न तुमहारे पास आने को सबसे दूर हो सकती
दूर जाने का ख्याल एकमात्र ही
कई टुकड़े कर देते मेरे दिल के

समझने और समझाने के जंग में
थक सी गई मैं

तुम्हें भूल जाना मेरे बस में नहीं
फिर भी,
भूलने के कई सारी नाकाम कोशिश ने
ओर भी पास लेकर खरा कर दिया हैं।

क्या मंजूर हैं मेरे तक़दीर को
न जाने मैं कबतक खुद की जान के लिए लड़ती रहूंगी।

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19 JUL 2021 AT 11:45

Mantra of Happiness:- Keep your heart free from hate,your mind from worry. Live simply, expect little,give much.

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21 JUN 2021 AT 11:06

एक लड़की की ज़िंदगी........।।।।।

जन्म के साथ ही सब तय कर दिया जाता हैं,
मजाल हैं अपनी मर्ज़ी से उफ्फ तक भी बोल दो
कैसे रहना हैं,
कैसे बात करना हैं,
किससे बात करनी हैं,किससे नहीं
सब तय रहता है।

कहाँ रहना हैं,
कैसे उठना बैठना
घर समय से आना
हर काम सीखना

बोलचाल भी अपनी मर्ज़ी से नहीं।

जबतक बात सुनो,सहो
तबतक तुम अच्छी लड़की हो
एक भी गलती हो जाये
तो इस लड़की से कुछ नही होगा
लड़की हो सब काम नही सीखोगी
तो तुम्हरा ज़िन्दगी कैसे चलेगा।

बस एक काम
बस एक
अपने मन की कर डालो तो बेशर्म या संस्कारहीन कहला जाते हों।

एक भी फैसला खुद की नहीं ले सकते
अपनी तकलीफ, अपनी परेशानी भी जाहिर नही कर सकतें। क्योंकि इशारों पर जो नाचना हैं।

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30 MAR 2021 AT 22:51

एक पागल पड़ोसी था
भले दिखता था वो भोला-भला सा
पर बातें उसकी हुआ करती थी अतरंगी सी
पर था वो दिल का साफ इंसान

उनदोनों के बीच था बस एक रसोई का फासला
आते जाते निगाहें उसकी
बस खिड़कियों के पीछे उस मासूम पर हुआ करती थी

बेख़बर सी थी वो उस अंजान मक़सद(मोहब्बत) से
फिर एक दिन दोनों की संवाद की हो गयी शुरुआत
नज़रें टकराने लगी, उम्मीदे बढ़ने लगी
पर फिर भी बात नहीं बनी
शायद उसे कुछ खोने का डर था।



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30 MAR 2021 AT 22:33

हारकर भी जितना सीखा हैं मैंने
पीछे रहकर भी आगे आना सीखा हैं मैंने
खूबसूरत निगाहें नहीं हैं तो क्या
खूबसूरत अदाओं से दिल सबका जीता हैं मैंने

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8 MAR 2021 AT 11:07

तू रुक मत, तू डर मत
तुझसे ही तो नया जीवन जुड़ा हैं।
तू आज है तो कल भी तू ही हैं।

तू सब कर सकती हैं,तू ऊंची उड़ान भी भर सकती हैं।
तू ही नई दिशा हैं, तुझमें सारा जहाँ निहित हैं।
ममता की मूरत भी तू, करुणा का सागर भी तू हैं।

मत भूल की तू नारी हैं, आदिशक्ति की प्रमाण हैं तू

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