जिंदगी खफ़ा क्यों है तू बता जरा
मेरी खता क्या है तू बता जरा
कभी हंसाती है कभी रुलाती है
तेरी रज़ा क्या है तू बता जरा
गमों के बादल,खुशियों की फुहार
ये फिज़ा क्या है तू बता जरा
भीड़ में भी कोई तन्हा खड़ा है
इसकी वजह क्या है तू बता जरा
ये गम भी मुस्कुरा कर चले जाते हैं
फिर मेरी सज़ा क्या है तू बता जरा
गर रोते-रोते कट गई जिंदगी मेरी
इसमें मज़ा क्या है तू बता जरा-
ना जाने कितनी दफ़ा ख़ुदा से तुझे माँगा होगा
कहाँ- कहाँ नहीं मन्नतों का धागा बाँधा होगा
शायद वो मरने के बाद ही मुकम्मल होता है
जो सच्चा इश्क़ नज़रे-ए-जहाँ में आधा होगा!!-
गुल-ए-वफ़ा खिलते बेशक, गर शक़ की जमीं ना होती
ये उजड़े जज्ब़ात दिखते बेशक,गर नजरों में कमी ना होती
उड़ चला परिंदा सुर्ख़ कमजोर शाख़-ए-शज़र को देखकर
गुजरते तूफां में वो गिरता बेशक, गर मूल में नमी ना होती
कल देखा था सच के हार का मंज़र सरे- बाजार कहीं
बिक जाता मैं भी बेशक, गर फ़ितरत में अमीं ना होती
कुर्बां मिरे जिस्म-औ-जां को कहाँ मिल पाता सम्मान गैरो में
मिटता नाम-ओ-निशां बेशक,गर वतन की सरजमीं ना होती
रोके जा रही थी मिरे सपनों की उड़ान खुले आसमां में ही
मर गए होते सारे ख़्वाब बेशक, गर मिरी हां में नहीं ना होती-
लिखें जाएंगे कई कहानी किस्से मिरे, कुछ किरदारों में ढलना अभी बाकी है
तपा रहा है सूरज साथ चल चलकर, अंगारों पर चलना अभी बाकी है
आब-ए-चश्म रुकते नहीं, अपनों की दिल पर आज भी कई सौगातें रही
रख ली है जां अपनी हथेली पर, मिरा गैरों से मिलना अभी बाकी है
ता'उम्र सुना मैंने नासमझ, नालायक हूँ, क्यों इतना आंखों में चुभता रहा
चलो कर लेते हैं ये हक़ की बात, मिरा होश से खलना अभी बाकी है
दौड़ रहा हूँ वक्त की रफ़्तार के साथ, एक दिन पीछे सारा जमाना होगा
मैं शांत इसां मगर तूफान सा बनूँ , इतिहास बदलना अभी बाकी हैं
कट रही मिरी हयात सहारों से, फिर भी तन्हा मगर मैं हर लम्हा रहा
मिल जाए कोई ए-काश गिराने वाला, मिरा खुद से संभलना अभी बाकी है-
ये रोली ये कुमकुम आज सब फ़क्र में है!
क्योंकि ये पर्व भाई-बहन के जिक्र में है!!
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धान हूँ मैं !
लहरा रही हूँ ना ...
पता है क्यों ?
क्योंकि एक किसान के
कर्मों का प्रतिफल हूँ मैं
पिता सम पाला-पोसा ,
प्रतिकूल परिस्थितियों में संभाला
साया बनकर यह सफर तय किया
आज चमक है उसकी आँखों में
पर ...कुछ पल की
इसके आँगन से विदा होकर
भरे बाजार में बोली लगेगी
और मैं चाहती हूँ ऊँचा दाम लगे
ताकि सब का पेट भरने वाला
कभी भूखा ना रहे!-
सुना है,किसी की उम्मीदों पर लहराती हूँ
मैं खुश हूँ! हर किसान के दिल में आती हूँ-
ठान लिया है मैंने अब स्वयं को लक्ष्य तक पहुँचाना है
सारी खूबियों को पहचान कर सही दिशा में लगाना है
हर मुसीबत को पार करके ,हौसलों से कदम बढ़ाना है
दूर खड़ी मेरी मंजिल है तो विश्वास,धैर्य धारण करना है
कड़ी मेहनत और लगन से निरंतर कुछ नया सीखना है
विफलता सफलता एक समान,अनोखा तजुर्बा पाना है
ना जरूरत मुझे सहारे की बस ख़ुद को सहारा बनाना है
गिरूंगा गर गहरे समुद्र में मुझे ख़ुद से किनारा बनाना है-
भारतीय जीवन पद्धति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव हुआ
संयम ,सदाचार लोप हो रहे एवं अपनी संस्कृति का हनन हुआ
शिक्षा एकमात्र व्यवसाय बन रही,गुरु शिष्य का संबंध खंड-खंड हुआ
शिक्षक को गरिमा का संज्ञान नहीं,विद्यार्थी को गुरु का ना मान हुआ
भारी बस्ता व किताबों के बोझ के नीचे बच्चों का बचपन दबा हुआ
रटन प्रणाली का प्रयोग हो रहा, भय,निराशा में हर विद्यार्थी पल रहा
व्यवहारिकता और यथार्थवाद से अन्नभिज्ञ, स्वाबलंबी ना कोई हुआ
धर्म, परंपराएँ पीछे छूट रही, मूल्यपरक शिक्षा का अपमान हुआ
है वक्त अब बदलाव का, नीतिपूर्ण शिक्षा को सुसंगठित करने का
अनुशासित,आत्मसम्मान,कर्तव्यनिष्ठ,प्रेम-भाव, स्वसुलभ बनाने का
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एक मुलाक़ात हो जिसमें क़ायनात का भी साथ हो
हमारे रिश्ते की यहीं से एक प्यारी-सी शुरुआत हो
चाँद की चाँदनी हो और तारों की भी बारात हो
हाथों में हाथ हो उम्र भर का यह रिश्ता ख़ास हो
आँखों से हर बात हो दिखते सभी जज़्बात हो
साँसों की आवाज़ में फिर दिल से आगाज़ हो
फ़क़त दो रूहों का मेल हो, तन का ना कभी नाम हो
इन अनमोल, खूबसूरत एहसासों का ना कोई दाम हो-