भारतीय जीवन पद्धति पर पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव हुआ
संयम ,सदाचार लोप हो रहे एवं अपनी संस्कृति का हनन हुआ
शिक्षा एकमात्र व्यवसाय बन रही,गुरु शिष्य का संबंध खंड-खंड हुआ
शिक्षक को गरिमा का संज्ञान नहीं,विद्यार्थी को गुरु का ना मान हुआ
भारी बस्ता व किताबों के बोझ के नीचे बच्चों का बचपन दबा हुआ
रटन प्रणाली का प्रयोग हो रहा, भय,निराशा में हर विद्यार्थी पल रहा
व्यवहारिकता और यथार्थवाद से अन्नभिज्ञ, स्वाबलंबी ना कोई हुआ
धर्म, परंपराएँ पीछे छूट रही, मूल्यपरक शिक्षा का अपमान हुआ
है वक्त अब बदलाव का, नीतिपूर्ण शिक्षा को सुसंगठित करने का
अनुशासित,आत्मसम्मान,कर्तव्यनिष्ठ,प्रेम-भाव, स्वसुलभ बनाने का
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