एक अंजाना सा एहसास
दिल में दस्तक देने लगता है
उसे अपना बनाना लगता है
फ़िर से उस भोले से दिल को बहलाने लगता है
दिमाग बार -बार कहता है उस अंजान दिल से
की जनाब अब तो संभल जाओ!
क्यों तुम हर बार खुद से दग़ा करते हो?
दिल है ही ऐसा
क्या करें !
जब तक उसकी याद में पलके नम ना हो
साथ उसका छुटने का गम ना हो
वो एहसास सच्चा कहाँ!!
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