जिसने जितना बोला तुमने उसको उतना जाना
मैं ठहरी अल्पभाषी तुमने मुझको कितना पहचाना?-
चेहरे पर बस, मुस्कुराहट लेकर चलती हूँ🌼
मैं और मेरा मन, अक्सर यही बातें करते हैं
की कैसे होंगे वो लोग, जो सिर्फ बातें करते है।
पेड़ की छाँव में बैठकर गुट बनाया करते हैं
पेड़ कट जाने पर उसकी ताप लिया करते हैं।
छोटे शहर के बच्चे जब बड़े होने लगते हैं,
तो तूफानों से लड़ने की बातें किया करते हैं
जो प्रेमी भीगे आंखों को नहीं पोछा करते है
वही चाँद-तारे तोड़ लाने के वादें किया करते है
मैं और मेरा मन, अक्सर यही बातें करते है
की कैसे होंगे वो लोग, जो सिर्फ बातें करते हैं-
रक्त की लाली है जिसमें
उस सूर्य की नज़रे अब झुकी है
जो शुरू न हुई थी कभी
आज वो जंग क्यों रुकी है
पतझड़ के पत्ते मलीन ही सही
उनके कारण नया आरंभ होता हैं
जब तुम्हारी हिम्मत जवाब दे जाए
वहीं तुम्हारा आकलन होता है
जो हुआ उसको सोच कर
व्यर्थ अपने अश्रु क्यों बहाना है
जो सीखा उसको आगे भी तो
अड़चनों में अपनाना है
सागर के हिय में जो मोती पाया
उस पर थोड़ा घमंड दिखा
इन गरजती लहरों को चीर कर
अपनी विजय नौका आगे बढ़ा।-
जब तुम निखर कर आओगी,
तब आसमान हो जाओगी
तब फर्क नहीं पड़ेगा,
तुम कौन हो कैसी हो क्या हो,
सब बस तुम्हें निहारेंगे
और यही सोचेंगे कि..
ये क्रांति कब और कैसे हुई..-
मैं रुक नहीं सकती
मेरी खुद की एक परिभाषा है
मेरी सहजता और जिज्ञासा ही
एकमात्र मेरा आभूषण है
मेरे सौंदर्य का आकलन
तुम क्या करोगे?
मेरी खुशी मेरी सुंदरता है
उसे तुम छीन नहीं सकते
मेरे हृदय को पुकारोगे
तो मैं अनंत काल में समा जाऊँगी
क्यों..? ये मत पूछना
मैं गगन हूँ,
मुझे तुम तोड़ नहीं सकते
मैं सागर हूँ,
मुझे तुम मोड़ नहीं सकते
मैं भिन्न थी, मैं भिन्न हूँ
मुझे साधारण कह कर
तुम मुझे रोक नहीं सकते।-
तुम बदलते मौसम की तरह हो,
कभी मेरे मन के, तो कभी उल्टे
और जो पथ तुम तक जाती हो,
वो सहज कैसे हो सकती है।
तुम्हारा ये मृदुल रूप
अथाह पहेलियों से भरा है,
जो अल्पना के रंगों सा रंगीन है
पर शुरुआत कहाँ से करूँ,
ये पता नहीं।
पर मैं भी एक पवन हूँ, जो
हर मौसम मंद-मंद बहती है
पथ की हर अड़चन पार करती है
पहेलियों की सीमा जिसे
रोक नहीं सकती, और
जो रंगों को भी अपने सागर में
समाहित करना जानती है।-
एक सफर की जुस्तजू अभी बाकी थी
हमारे आसमानों की बातचीत अभी बाकी थी
इब्तिसाम-ए-गुलिस्तां था तुम्हारी आँखों मे,
इश्तिहार में बदनामी, अभी बाकी थी
नींदों में खो जाने को, रातें अभी बाकी थी
ख्यालों में जो खो गयी थी मैं,
बातें करते करते सो गई थी मैं
पर नापसन्द था तुम्हें मेरा धोका देना
तुम्हारी महबूबा का तुम्हें छोड़,
बालिश को गले लगा लेना
अब तुम जो मशरूफ़ हो गए हो
एक नए अफ़साने के लिए,
तो अब सुन लो दरख्वास्त मेरी
आज ज़िद नहीं करूंगी,
ख़्वाबीदा में जाने के लिए..-
सुनो पथिक, तुम क्यों डरते हो
दिन ढलते अपने भीतर,
भय को क्यों भरते हो
अपने स्वर में तुम सशस्त्र हो
अपने लक्ष्य के तुम खुद निर्माता
सत्य के उजियारे को,
तुम क्यों झुठलाते हो..
सुनो पथिक, तुम क्यों डरते हो-
अगर होते इस धरा पर
सबसे मनमोहक पुष्प,
अगर कहीं दो गाओं के
मिलान से वर्षा होती घनघोर,
अगर रात्रि के चाँद सितारे
सँवारते मेरी कुटिया को,
अगर कोई सुनाता वो धुन
जो आत्मा तृप्त करती
अगर मिल जाती मन लुभावन
विश्व की सबसे खूबसूरत पोशाक
फिर भी मैं ये कहती कि..
उन सबसे सर्वोपरि है
ये साथ तुम्हारा-