वो ख़्वाब भी उस दिन हक़ीक़त बनकर बिखर गया,
जब किसी ओर की मुस्कुराहट देखकर
बेवजह उनका चेहरा निखर गया ।।-
बड़ी इमारतों की दरकार नहीं,
हम खुले आसमान के नीचे सो जाएंँगें
सुना है पक्की दीवारों के बीच
रिश्ते कच्चे हो जाते हैं ।।
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पूराने सपनों की कब्र के नीचे
आज बचे हुए अरमान भी दफ़ना अाई हूंँ,
मैं लौट आई हूंँ
पर इस बार अपनी शक्सियत फना कर अाई हूंँ।।
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नए दोस्त मिले है यहाँ ,
पर तुम्हारे जैसा कोई यार नहीं ।।
समझाते सब है यहाँ ,
पर तुम्हारे जैसा कोई समझता नहीं ।।-
चंद बंधन निभाने के इस बोझ से
जरूरी रिश्तों की डोर छूट सी गई है ।।
सपनों से भरी रात की इस खोज में
वो सुकून की नींद कही टूट सी गई है ।।
मंजिल को पाने की इस चाह में
ख्वाहिशों की राह कही खो सी गई है ।।
अरे! अब तो मुश्किलों के दौर में भी
खुलकर मुस्कराने की आदत हो सी गई है ।।
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सिखाया था उसने हाथ थामना ,
तूने ऊंगली पकड़ना भी मुनासिब ना समझा ।।
बाताया था उसने अच्छा इंसान बनना ,
तूने तो सौम्य संतान बनना भी जरूरी ना समझा ।।-
Sometimes with entangled threads of inner insecurities and outer torments you weave your own unique dream which can be difficult to release but once it gets shape it looks beautiful in its own way.
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