Ritika bajaj   (Ritika bajaj)
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Joined 1 May 2020


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Joined 1 May 2020
29 APR AT 23:45

अक्सर मैं रात से यूँ संवाद किया करती हूं
मन मे अंनत उलझने लेकर फरियाद किया करती हूं
ठेहरें लफ्ज़ निकलते है जब जज़्बातों के पन्नो पर
भूत, भविष्य, वर्तमान पर विवाद किया करती हूं.!

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10 SEP 2021 AT 20:47

अब तो बोझ के आलम से
सूखकर पत्ते भी अपना वजूद खो रहे है,
और इंसानो के बेवजह पाले गिरगिट
कभी लाल तो कभी पीले हो रहे है....!

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21 JUL 2021 AT 9:27

न कोई क़तारें न कोई ठिकाना यहाँ
ज़मी की हदों में बसर कर
उन्मुक्त उड़ानों से छूना है ये जहां...
देर शाम ढले तो घर लौटे
दरख़्तों, घोसलों न जाने कहाँ-कहाँ
पंखों से नहीं, हौसलों से उड़ते है हम
पिंजरे से निकल ,बनाने है अब अपने निशां
हम परिंदों का है आसमां..!!
~Ritika bajaj

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9 JUL 2021 AT 12:52

यक़ीनन मेरी मंज़िल बहुत ख़ूबसूरत है
हार की मार से भी आरज़ू कम नहीं होती..!!

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11 JUL 2021 AT 20:40

ऐ रात...तू ही बता
क्या कसूर है उस दिनकर का
जो तेरे आने पर उसे ओझल होना पड़ा..!!

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5 JUL 2021 AT 18:46

सपनों में रहने की आदत नहीं हमें
यथार्थ से हम अच्छी तरह परिचित है,
उन्हें साकार कर ही दम लेना है
अब हकीकत से पीछे हटना अनुचित है..!!

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3 JUL 2021 AT 21:47

मैं रात के नाम एक ख़त लिखता हूँ...
तुझे आसमां में चाँद
और ख़ुद को छत लिखता हूँ..!!

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30 JUN 2021 AT 19:28

कितना अजब अंदाज़ है शाम का
जी चाहता है पंछी बन उड़ जाऊँ
पिंजरे से निकल कर क्षितिज पार चला जाऊँ...

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27 JUN 2021 AT 14:13

आज खिलीं है,
कल टूट जाएँगी
पत्तियाँ ही तो है,
फिर उग आएँगी..!!

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27 JUN 2021 AT 13:34

में
माफियां नहीं मिलती...
हर कोई यहाँ
चार कंधो पर ही
बाइज़्ज़त बरी होता है..!!

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