काश और शायद की जंग चल रही है,
मैं आज भी दोनो से हार रहा हूं,
अजीब है ना जंग किसी और की,
और पीड़ित बन मैं हार रहा हूं।
ये आसपास के लोग मुझे,
डराने पे लगे है क्या,
बहक के खो जाऊंगा मैं,
यही चाहते है क्या,
चिढ़न हो रही है हर बात में,
ये मुझे नोच खाएंगी,
रात मेरे आसुओं तक को,
ना पोंछ पाएंगी,
नाजुक सा भार होगा,
मैं मान लेता हूं,
पर उतारने वाले ही नहीं मिले,
यही जान लेता हूं।
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