महज़ एक शब्द कहा है आलिंगन ?
तुम्हारा मेरे प्रति अगाध प्रेम का
सूचक है आलिंगन
निशब्द सैकड़ों संवादों का
जरिया है आलिंगन
कही बहुत दफा अनकही दुखों का
निवारण है आलिंगन
तुम्हारी हृदय की ध्वनि मुझ तक आती है
वो है आलिंगन
Ritik Arya dubey
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दैहिक स्पर्श से परे दूर हो कर भी
प्रेम किया जा सकता हैं
और एक दूसरे के अंतर्मन को
महसूस किया जा सकता हैं-
जो एहसास तुम्हारे और मेरे दरम्यान हैं
उसकी कोई परिभाषा ही नहीं हैं
प्रेम इश्क़ प्यार मोहब्बत
ये सब दुनियां के लिए हैं
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मैं कल्पनाएं करता हूं
फिर दूर आकाश में हिम शिखर जैसे
सफ़ेद बादलों को देखता हूं
जैसे कोई चित्रकार कहीं छुप कर
सिंदूरी रंग से रंग रहा हैं
मैं कल्पनाएं करता हूं अनेक रूपों में
और तुम सारी कल्पनाओं के केंद्र बिंदु में
साकार होती दिखती हो
इसीलिए तुम मेरी प्रिय भाषा हो
जिसमें कहा जा सकता है दुःख बिना संकोच के
जिसमें सुना जा सकता हैं अनकहा अनसुना किस्सा
फिर वो सारी कल्पनाएं सार्थक हो जाती हैं-
स्त्रियों की भावनाएं सराय जैसी नहीं होती है
की कोई आया रुका और चला जाए
स्त्रियों की भावनाएं तो भव्य महल की जैसी होती है
जिसमें या तो कोई आ नहीं सकता
और जो आ गया वो
जीवन पर्यंत जा नहीं सकता
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अधूरा था किरदारों में
अब अधूरे अल्फाजों में मौन हूं
मुझे ख़बर नहीं है जमाने की
ज़माने में मैं कौन हूं
गुजर रही जिंदगी छूटते लोग
अकेलेपन में कहता मैं कौन हूं
ये अच्छी बात नहीं है बस बता रहा हूं
अच्छी लगने पर बस अब मौन हूं
क्या जिंदगी यही सिलवटे हैं जानिब
मेरी कहानियां बची है मैं कौन हूं-
तुम जादू हो या कल्पना पता नहीं
पर जब भी इन पहाड़ों को देखता हूं
लगता है तुम इन जैसी ही होगी
कठोर पर खूबसूरत
ज़िन्दगी का मतलब समझाने वाली
झरने सी बहती हुई
रास्ते से कहती हुई
बस यूं ही मगरुर इन फिज़ाओं में
मुझे गुमराह करती हुई
तुम जादू हो या कल्पना पता नहीं-
कुछ दबी हुईं ख्वाहिशें हैं
खोए हुए सपने हैं
चेहरे पर मंद मंद मुस्कुराहटे हैं
अनसुनी आहटे है अनकहे अल्फाज हैं
ना समझ फैसले हैं
कुछ उलझने है राहों में
फिर भी कोशिशें बेहिसाब हैं
कुछ ऐसे मजधार है
जिसके मिलते नहीं किनारे हैं
बस यही तो ज़िन्दगी हैं-
कमबख्त ये दिल बेईमान है
या नीयत
कोई तो फिसले जा रहा है
हम बड़ी मुश्किल से संभले
फिर दरख़्त पर चढ़े
फिर लुढ़के फिर नीचे गिरे
हम तेरे खिड़की से झांके
कभी दरख़्त पर लटके
कभी नीचे गिरे
तेरे जुल्फों का क्या कुसूर
जो कभी इधर उड़े कभी उधर गिरे-
मैं तुम्हारी कहानियों में
परिभाषित मिथ्या चरित्र का हिस्सा हूं
जिसका क्षेत्रफल तुम्हारी सोच पर आधारित हैं
बताना चाहता हूं तुम्हें मैं भी
तुम्हारी तरह ही किसी कहानी का
एक अनकहा हिस्सा हूं
जो कभी मिलकर भी ना मिल सका
उस जिन्दगी का एक किस्सा हूं
थोड़े तस्सली से और पढ़ लिया होता तो
समझ आता लेकिन तुमने
बिना पढ़े ही पलट दिए सारे पन्ने
इसलिए मैं तुम्हारी कहानियों में
परिभाषित मिथ्या चरित्र का हिस्सा हूं-