Ritesh Singh   (✍Ritesh Singh 'Rit'©️)
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Joined 5 July 2021


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Joined 5 July 2021
15 APR AT 23:49

तेरा मेरा वो बेनाम सा रिश्ता ,
जमाने में अब कहां बेनाम रहा ,

सारे जग को खबर हो गई,
चर्चा-ए-बाजार अब यह आम रहा ,

और देखा जब से तेरी तस्वीरों को ,
न सुकून-ए-क़ल्ब न आराम रहा ,

कि तुझे पाने की इश्तियाक़ में जानां ,
किसी बात की परवाह न अंजाम रहा ,

दिन रात ज़हन में रखकर तुझको सोचू ,
दुजा न अब कोई मुझको काम रहा ,

देख तेरे इश्क की होड़ में' रितेश ',
मैं भी अब थोड़ा बदनाम रहा ।

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13 APR AT 22:45

जिंदगी से इत्तिफ़ाक़ अब मैं कुछ ख़ास नहीं रखता ,
वो बिछड़ा हुआ आश्ना ,अब मुझे अपने पास नहीं रखता ,

वो करता है मुझसे , मुझे ही छोड़ जाने की बातें ,
मुझे भी खो देने का वो अब एहसास नहीं रखता ,

कि रहने लगा हूॅं महफ़िल में भी अफ़सुर्दा जानाॅं...
खुश तो दिखता हूं पर... ,ज़हन में अब उल्लास नहीं रखता ,

और चाहा जिसे दिन रात दिल-ओ-जान से ' रितेश ' ,
तेरे इज़्तिराब का अब वो जरा भी आभास नहीं रखता ।

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12 APR AT 22:30

आ.. बैठ पास मेरे ज़हीर , कि ज़ी भर तुझको निहारा जाए ,
तुझे ,तुझसे ही जीतने के खातिर , क्यों ना ख़ुद को तुझ पर हारा जाए ।

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10 APR AT 23:44

इक रोज मुक़म्मल हो जाएंगे,
गर मिल जाए साथ तेरा मेरा... ,

सारी ख्वाहिशें भी मुस्कुराएंगी,
गर मिल जाए हाथ तेरा मेरा... ,

इक डर है मन के भीतर कहीं... ,
गर बीच आ जाए जात तेरा मेरा...,

चाह के भी ना फिर कोई समझेगा ,
दर्दे-ए-दिल ज़ज्बात तेरा मेरा...।

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8 APR AT 23:50

अपनी कटु वाणी के तले ,
जो दे देते हैं अच्छे अच्छो को आघात ,

इज्जत तो इनकी खुद कुछ नहीं होती ,
अपनी हैसियत से ज्यादा कर देते हैं यह बात ,

समझ ज्ञान पर इनके ताला है पड़ जाता ,
भीतर इनके अपने ना होते कोई जज़्बात ,

समय आन पड़ने पर यह हरदम...,
दिखा ही देते हैं यह अपनी औकात।

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7 APR AT 23:52

उफ्फ... ये उनके रुख़सार की लाली,उस पर उनके नज़रें झुके हुए हैं ,
पलके भी हटाएं तो कैसे हटाएं ,सारी मासूमियत जो उन पर आकर रुके हुए ।

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4 APR AT 23:44

मोहब्बत में सांसों की तपिश ना पूछिए ,
हुस्न-ए-बेपर्दा उनकी कशिश ना पूछिए ,
हुए हैं जब से हम उनके इश्क में शैदाई ,
कि बढ़ते हसरतों की हमसे... अब रवीश ना पूछिए ।

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2 APR AT 20:33

इश्क़ में जो दफ़न हो चुके एहसास ,
उम्मीद-ए-वापसी,ज़हन में जिंदा अभी बाकी... है ,

गम-ए-उल्फत में अश्क सारे बह से गए ,
कुछ ख़ुशनुमां लम्हात, चुनिंदा अभी बाकी... है ,

कि पतझड़ में शजर के सारे पत्ते बिखर से है गए ,
बैठा शाख पर ,उम्मीद-ए-आस परिंदा अभी बाकी... है ,

बदस्तूर बदलते वक्त के संग,जिसे भूल ना पाया कभी 'रितेश'
इक अरसे से बनकर धड़कन शख़्स,दिल-ए-बाशिंदा अभी बाकी... है ।©

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31 MAR AT 0:05

धड़कते हुए दिल के हर जज़्बात में तुम हो ,
जागते सोते मेरे हर एक ख़्वाब में तुम हो ,
इस कदर मैंने तुमको चाहा है जानां...
ज़हन में बसे हुए हर एक याद में तुम हो ।

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14 MAR AT 23:52

थाम कर उम्र भर के लिए हाथ मेरा,ये जिंदगी मेरे नाम कर दो ,
कर के खुशनसीबों में मुझे शामिल,मेरी मोहब्बत का इतना एहतराम कर दो।

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