जब अपनों से ही मिले हो ज़ख्म ,
तो फिर गैरों को दिखाया नहीं करते ,
आंखों में देकर मोहब्बत के आंसू ,
रक़ीब के बाहों में मुस्कुराया नहीं करते ,
टूट जाते है इश्क़ में अक्सर जिनके भरोसे ,
चाह कर भी फिर कहीं वो प्रेम लुटाया नहीं करते ,
जीते हैं जो दिलों में जज्बातों का लेकर समंदर ,
धड़कनों से उनके खेल ,उन्हें आजमाया नहीं करते ,
और उजाड़ कर बाग से किसी फूल की जिंदगी ,
महबूब के गेसुओं को यूं सजाया नहीं करते ,
अलहदा तपिश में जो जलता है रात भर ,
गैरों से कर गुफ़्तगू ' रितेश ',उसे और जलाया नहीं करते ।
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Ritesh Singh
(✍Ritesh Singh 'Rit'©️)
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Hi..
I am ritesh from cg
वैसे तो मैं कोई लेखक नहीं हूं पर शुरू से कुछ ना कुछ लिखने का शौक है... read more
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Joined 5 July 2021
5 OCT AT 21:21
14 SEP AT 20:19
दर्द देखा ,उदासियां देखीं ,
देखीं शहरों की मजबूरियां भी ,
घिसे हुए चप्पलों को ना देखा किसी ने ,
ना देखा किसी ने अपनों से मिलों की दूरियां भी ।
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27 AUG AT 19:42
हे दुखहर्ता!हे सुखकर्ता!आते हैं आप भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी,
इस बार कर दीजिए ना सबकी,नेकियों वाली मनोकामना पूर्ति ।-
27 AUG AT 12:33
लेखकों व पाठकों को सूचित किया जाता है ,
कि बहुत सी चीजों को मध्य नजर रखते हुए व चिंतन मनन करने के पश्चात् मेरे द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि अब से रचनाओं पर प्रतिक्रिया देने में असमर्थता व्यक्त करता हूॅं ।
पंक्तियों पर Like के तौर पर ही मेरा स्नेह समझा जावे 🙏☺️
और अपना प्रेम बनाए रखें 🤗-