Ritesh Ranjan   (गीतेय…)
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Heard that writing is cheaper than therapy. Being cheap af, m here to see if that’s true
Joined 8 August 2017


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2 OCT 2024 AT 10:26

धन निष्कासन,मन निष्कासन
होता रहा श्रेष्ठ ‘बुद्धि’ निष्कासन
निष्कासन यह बनी पिशाचन
है दिखता चमकीला विदेश गमन
टटोले न नवयुवक स्वदेश और स्वमन 

धन निष्कासन,मन निष्कासन
होता रहा श्रेष्ठ ‘सौंदर्य’ निष्कासन
निष्कासन यह बनी पिशाचन
अवसर के आड़ में 
बढ़ता रहा विदेश भ्रमण
ढहता रहा स्वदेश रमन
उजड़ा जैसे अपना चमन

धन निष्कासन,मन निष्कासन
होता रहा श्रेष्ठ ‘बल’ निष्कासन
निष्कासन यह बनी पिशाचन
परदेश में है बेहतर वेदिका की वेदी
इस भाव से हुआ युवकों का मस्तिष्क क्षरण
बढ़ा घाव जब हुआ स्वभाव हरण

धन निष्कासन,मन निष्कासन
होता रहा श्रेष्ठ ‘यंत्र,तंत्र और मंत्र’ निष्कासन
निष्कासन यह बनी पिशाचन
देश निष्कासन से जो बच पाता
भाग्य विधाता हो जाता
युग प्रणेता कहलाता
पुनः विश्वगुरु बन जाता
सब मुमकिन हो पाता
गर "स्वदेश सेवा" का भाव गहराता।
गर "स्वदेश सेवा" का भाव गहराता।।

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26 SEP 2024 AT 11:44

ये सच है कि तेरे गले की खनक है अच्छी।
पर उसके पैरों के पायल की बात ही और थी।।

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24 SEP 2024 AT 4:41

जिंदा हूं अभी की जतन हैं सारे खुश रहने के,
गीतेय गम गैरत में गायेंगे बैठ इत्मीनान से ।
फिलहाल मजा ही सा आ गया जन्नत पी कर सारा,
लोगों ने आदतन इसे ही शराब बता रखा है ।।

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22 SEP 2024 AT 23:14

दो ही हैं सुरतें कविता होने के,
या तो उसे कालीदास ने लिखा,
दुजा की उसे काली रात में लिखा।।

फिर चाहें रात भर रोता रहे कोई
रंज ओ रंजन संजोता रहे कोई
या की उड़ेले शब्द बेमतलब से
स्याहकतरे बिखेरे यादों के तीरे
की काश! बाहें बिछा दे तू।
फिर आंखों में नींद उतर आए।।

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27 AUG 2024 AT 8:34

आप ही तुम करो तेहैय्या।
अर्जुन सा ना अब कोई लड़य्या ।।
धरो धनुष की धन्नू धुनय्या।
कली काल में कहां कोई कन्हैय्या।।

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14 FEB 2024 AT 10:53

प्यार गुलाबी कनक परी की
फूटे पंचमी के बासंती स्वर
पतझड़ के प्रसूण झड़े सब
कोपल कांटे भरे उगे हैं
शब्द सुनहरे सार सारंगी
धरती पूरी हुई नारंगी
ऐसे में करना है साधना
ध्येय भी बाकी है भेदना
तो करो कृपा हे मातु दयाला
बुद्धि सिद्धि दे करहूं निहाला
साधक ठहरा मैं अभागी
कोई तो अब जुगत जागे
सुने से बढूं थोड़ा आगे
अभय वरद पूर्ण हस्त तुम्हारे
रखो मुझ पे हम हैं थके हारे
सदैव नत सिर झुकते हैं माथ
माते सिर्फ तेरे आगे।
माते सिर्फ तेरे आगे।।

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31 AUG 2023 AT 21:53

बहोत ख़ास था किस्सा मेरा..मेरे लिए.,
तुरंत आम हो गया वो दुनिया के बाजार में आते ही...

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31 JUL 2023 AT 0:04

इतवार था,अवकाश था,और तुम आई ना,
सो फिर आइना तोड़ डाला मैंने।
अब और ऐतबार नहीं इस चेहरे पर,
सुकून तो तीरे तस्वीर में है बस।
सो निहारता रहा सहर तक ,
रहा बैठा अकेला उसी बेंच पर,
जिसपे दो चार शाम हुई थी हमारी।
नीर नही अश्क से भरा था तालाब आज ,
उसी तालाब में सारी यादें विसर्जन कर आया।।

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24 JUL 2023 AT 9:31

सावन की प्रेम कहानी..

सावन का साया छाया
मन,मोर,घटा,भॅवर भाया
हर ओर हरियाली,खुशियाली, माया
हो प्रेम मगन मन इश्क गाया...

गाया सारे राग की रेखा,
बादल के बहार बाग देखा,
चहुं ओर अभ्र बवंडर रेखा,
लहरों से ढका समंदर देखा,
हुआ दिल बाग बाग जैसे पवन झोखा।।

फिर दिन ऐसे गुजरे चंद चार चंचल,
जैसे चांद की चारु चरुवर,
आगे आंगन की आबरू गिरधर,
जरा साम्य सोच नहीं अचल-विचल।

गर सब पाक है नही ज़रा मन खोटा
फिर धन,धाम, धर्म क्यूं भुला बैठा
प्रज्ञा परे धरो मन ढोठा।
सुबह का भुला शाम को लौटा।।

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16 MAR 2023 AT 21:58

महफिल तूने सजाई माना,
फिजाए भी जमाई माना,
रूकसती से पहले जो...
ना फुरसत से मिले जाना।
तो होना क्या खास है,
गर नही कोई साथ है,
तो क्या नई ये बात है।।
तू अकेला इक हुंकार है,फिर!
जाने दो अगर उन्हें इंकार है...

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