Ritesh Rai  
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Enthusiastic learner..
Creativity is my passion.


Feedback@{riteshrai583@gmail.com}
Joined 28 December 2017


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16 OCT AT 1:11

Darkness is spreading in search of spark.

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13 OCT AT 23:19

बस पतवार की दीवार ईंटों की हो गयी l

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13 OCT AT 23:16

उसे खुली किताब पसंद थी
मैं बंद निकला,
उसे सूरज पसंद था
मैं चांद निकला,
उसे बर्फ पसंद थी,
मैं आग निकला,
उसे बसंत पसंद था,
मैं पतझड़ निकला,
उसे मैं पसंद था,
मैं वो निकला l

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11 OCT AT 12:17

हम नौकरी की तैयारी कर रहे थे,
जाने अनजाने में दोस्तों से बिछड़ने की तैयारी कर रहे थेl

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27 SEP AT 23:39

किताबों की दुकानों की जगह
अब चाबियों के छल्ले बिकने लगे हैं,
अब हम भी तरक्की करने लगे हैं l

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26 SEP AT 1:29

जिसको पाने के लिए कभी दिन रात एक करते थे,
आज उसको बचाने के लिए दिन रात एक करते है ,
पत्थर कम नहीं हुए राहों के मगर,
अब मरहम लगाने वाले बहुत है l

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19 SEP AT 5:30

अब तो दिन काम में गुजर जाता है,
रातें काम के काम में निकल जाता है,
अक्सर थक हार के नींद में चला जाता हूँ ,
पगार मिलता तो है मगर,
अब पगार के लिए नहीं जाता हूँ l

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29 MAR AT 22:13

शून्य सा जीवन, अनंत् सा ख्वाब।

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25 MAR AT 19:48

चाहत थी दरिया पार करने की
मै भवरो संग उलझता रहा,
जो रोशनी थी अंदर,
मै उसे बाहर ढुढ़ता रहा।

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23 MAR AT 1:07

we meet we part
Yet in every turn
we do our part tirelessly
to feed and shine endlessly.

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