Ritesh Rai  
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Joined 28 December 2017


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Joined 28 December 2017
18 FEB AT 9:24

ये समुंदर की लहरे हैं, ये लहरों की समुंदर हैं
हवाओ संग ये बहती हैं, हवाएं इनके साथ झूमती हैं,
कभी सूरज डुबता हैं, तो कभी चाँद उभरता है,
ये सूरज को सुलाती हैं ये सूरज को जगाती हैं
ये समुंदर की लहरे हैं ये लहरों की समुंदर हैं।

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26 JAN AT 8:12

भारत विजयी विश्व पताका आज हम लहराएंगे,
हुए वीर शहीदो के नाम का तिलक आज हम लगाएंगे,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम सब मिल एक नई ऊर्जा का आह्वाहन करेंगे,
विकासशील से विकसित तक का सफर हम तय कराएंगे,
भारत विजयी विश्व पताका आज हम लहराएंगे।।
लिया जन्म जहा उसके लिए कुछ कर हम दिखाएंगे,
दिया जन्म जिसने उसके लिए मर मिट जाएंगे,
यह धरती है वीर जवानों की ये बात हम दुनिया को बतलाएंगे,
लेके तिरंगा कंधे पे, उस नीले गगन को चूम जायेंगे,
भारत विजयी विश्व पताका आज हम लहराएंगे।।

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29 NOV 2023 AT 23:51

कल रात को कैलेंडर देख कर सोया था,
सुबह माह नवंबर सोच कर धूप लेने निकल गया,
पहाड़ों में सर्दी गुमनाम होती नजर आई,
हवाओं में ठंडेपन का अभाव होता महसूस हुआ,
माह नवंबर का और एहसास जून का हुआ,
चलो, तुम्हें अपने गाँव का सैर कराते हैं,
मेरे गाँव में अब सूरज बादलो के साथ खेल रहा होगा,
धूप रोशनदान को चिढ़ा रहा होगा,
ठंडी हवाएँ अब खूब इतरा रही होंगी,
हर घर में लाईया और लड्डू चल रही होंगी,
जगह-जगह आलाव की लौ अब भी जल रही होगी,
माह नवंबर का सबको ठिठुरा रही होगी।

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14 SEP 2023 AT 16:18

सूरज वही चांद वही,
दिन वही रात वही,
भुख वही प्यास वही,
हम नई नई ख्वाब बुनते रहे
हम खुद को बहलाने के नए- नए बहाने ढूंढते रहे।।
आंखे वही नजरें वही,
नियत वही, निगाहे वही,
हम नजारे बदलते रहे,
आवाज वही बाते वही,
हम नए नए दोस्त बनाते रहे,
हम वही हमारे वही,
हम नए फर्श और नए-नए छत बनाते रहे,
खुद को बहलाने के नए नए बहाने ढूंढते रहे।

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19 NOV 2022 AT 15:20

तेरे करतूतो से पुरी इंसानियत शर्मसार होती नजर आ रही है,
ऐ दिल्ली अब तुम बड़ी मजबूर होती नजर आ रही है,
मां बाप से ज्यादा उम्मीदें रखी थी उस मासूम ने तुझसे,
पर तुझसे कायरता की बू नजर आ रही है,
उसके जिस्म का हर एक टुकड़ा तेरे हैवानियत की शिकार नजर आ रही है,
ऐ दिल्ली अब तू बड़ी मजबूर होती नजर आ रही है।

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31 MAY 2021 AT 13:19

वो इतना भी नाराज नही था
जितना समझ बैठे हम,
वो इतना भी नादान नही था,
जितना समझ बैठे हम।

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26 MAY 2021 AT 11:33

बहुत याद आती है,
गांव की मिट्टी मुझे,
पर घर भी बुलाता है,
अब शर्तो के साथ।

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17 MAY 2021 AT 20:03

पुरानी यारी है आईने से मेरी,
एक सुकून सा लगता है,
उसकी कड़वाहट में भी।

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13 MAY 2021 AT 0:43

कितना मुश्किल होता है,
खुद के सवालों का जवाब देना,
झूठ बोल नही सकते और,
सच सम्हाला नही जाता।

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9 MAY 2021 AT 12:17

मेरा वजूद तभी है
जब तेरा वजूद है,
मैं तेरी लेखनी,
तुम मेरी लेखन में हो,
इतनी मेरी औकात कहा।

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