Ritesh Pandey   (Lost_hermit)
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Joined 1 October 2017


Joined 1 October 2017
23 JAN 2021 AT 23:57

मैं शायरी कहुँ तू समझ जाए, बस ऐसा चाहता हु मैं।
मैं नज़्म पढू और तू जान जाए बस ऐसा चाहता हु मैं।
मेरी कहानी का हर शब्द तेरे बारे में हो बस ऐसा चाहता हु मैं।
हाँ, मैं मुश्कुराउ और वजह तू हो बस ऐसा चाहता हु मैं।
हाँ, कुछ ऐसा चाहता हु मैं, हाँ बस ऐसा चाहता हु मैं।.............

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11 JUL 2020 AT 19:54

Until I meet you



Listen to the music on which we danced like lunatics but deeply in love.
Read those verses of the novel about the romance of the dove.
Until I meet you........................(read caption)

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6 JUL 2020 AT 19:44

The Bon Fire.


Read Caption.
Short Story.

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5 JUL 2020 AT 17:33

The lesson after repentance.
Read caption !

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1 JUL 2020 AT 10:10

The peace inside you!

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18 JUN 2020 AT 23:09

उन यादों के किताबों में झांकता है मन,
कुछ याद करता है , कुछ भुला देता है मन।
उन हंसी के ठहाकों में , फिर से उन गलियों में,
खाने की लंबी कतारों में, बर्तनों की झंकारों में,
फिर से उन यादों में डूब जाता है मन।
फिर से देर तक जागकर, आपस की ढेर सारी बात कर,
क्लास में देर से जाकर, दोस्तों के बीच बैठना चाहता है मन।
तुम मेरा मजाक उड़ाना , मैं तुम्हारा मजाक उड़ाऊ, छोटी बातों पे लड़ जाऊ, तुम मेरे से रुठ जाओ,
फिर से वो ही हँसी मजाक करना चाहता है मन।
कभी यादों में डूबकर और कभी सबको यादों में डुबाकर,
अपनी सारि बातें सुनाने का करता है मन।

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29 MAY 2020 AT 23:14

वो आखरी खत।
आज बैठा, सोचा तुझे आखरी खत लिखू,
क्या लिखूं? कैसे "तुझे" आखिरी बार लिखूं।
शब्द संजो नहीं पाता, अबतो कुछ कहा नहीं जाता,
बोलना है बहुत कुछ लेकिन, लिखूं तो क्या लिखूं।
अच्छा, लिख दूँ वो सारे यादें और फिर रहने दूँ वो सारे वादे,
या फिर बताऊ वो हसीन नज़ारे ।
लिख दूँ वो लड़ाईयां, वो अंगड़ाइयां,
नहीं तो लिखूं सिर्फ रुस्वाइया ।
चलो, नहीं लिखता कुछ, ख़ाली ही छोर दिया, आखिरी खत है, अपना खालीपन है लिख दिया।



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22 MAY 2020 AT 11:51

Somewhere on earth!
Read the caption....

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19 MAY 2020 AT 11:01

The perfect one!

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18 MAY 2020 AT 17:07

वो जो अधुरी बात थी वो पूरा कह दो ना?
वो बात सुन के चेहरे को दूसरी तरफ उसने मोड़ लिया, शायद अब इससे ज्यादा बाते नहीं करनी थी उसे, वो चुप रहना चाहती थी, इससे ज्यादा बोलने पे वो शब्द विहीन हो जाती शायद , पता नहीं मुझे समझ नहीं आ रहा था।
बस, मन ही मन सोच रहा था , साईकोलौजी पढ़ ली होती तो पक्का जान जाता वो क्या सोच रही, इस विस्मय में संकोच में पड़ जाता की, बोलू की चुप रहू।
इस आपा धापी में , चुप चाप एक टक उसको निहार भी लेता था, मन ही मन तारीफ कर लेता था उसका, क्योंकि उस पल मुझे नहीं पता था कि क्या बोलू तो मन में ही तारीफों के पुल बंधता था, उसके बालों को, उसके मासूम आँखों को सराहा लेता था।
इस दरमयान उसकी चुप्पी अचानक से टिस कर गयी फिर से, और अपने ख़यालों को विराम देना ही बेहतर समझता मैंने, मुझे पता था वो नहीं बोलेगी अब कबतक उसको निहारते रहता ।

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