Ritesh Deo   (Ritesh)
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Joined 24 August 2019


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Joined 24 August 2019
31 DEC 2023 AT 9:33

ये नव वर्ष हमको स्वीकार नही
(कैप्शन में पढ़े).

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9 NOV 2023 AT 15:03

Dear myself,

I hope you will always remember that it's okay to take a pause, to breathe, to give yourself a break whenever the world is too overwhelming. Sometimes, things can be so hard but please always remember that you can take one day at a time. No one is rushing you but yourself. So, I want you to thank yourself for making it this far. You can be so messed up and full of chaotic thoughts, but I will always try to love you as you are. Thankyou for being you.

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9 NOV 2023 AT 12:57

Take that risk, or get the "what if"

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9 NOV 2023 AT 12:55

"When I am done telling you these stories, when you're done listening to these stories, I am no longer I, and you are no longer you. In this afternoon we briefly merged into one. After this, you will always carry a bit of me, and I will always carry a bit of you, even if we both forget this conversation."

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9 NOV 2023 AT 12:53

ज़ख्म अपने किस तरह से धोया होगा
तमाम रात ही वो खूब,खूब रोया होगा ।।
उसे अब तारों की गिनती मालूम होगी
यक़ीनन, सुब्ह तलक नहीं सोया होगा।।
ज़हीन बच्चे थे ऊँचे मुकाम पर हैं सारे
हक़ में नहीं वो फसल, जो बोया होगा ।।
बदनसीबों की उम्र तो बड़ी लंबी होती
जाने वो उम्र किस तरह से ढोया होगा ।।
किसने क्या पाया है मालूम नहीं मगर
एहसास तो है उसने क्या खोया होगा।।
बड़ी गुर्बत में उठतीअर्थियाँ गरीबों की
सारे सदमात, उसने कैसे डुबोया होगा ।।
लम्हालम्हा कलेजे पे बहुत भारी होगा
नफ़स'- नफ़स लम्हों को पिरोया होगा।।

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7 NOV 2023 AT 21:55

अब तो कोई भी, किसी की बात नहीं समझता 
अब कोई भी, किसी के जज़्बात नहीं समझता !

अपने मज़े में ग़ाफ़िल पत्थर दिल हैं सब के सब,
अब तो कोई भी, किसी के हालात नहीं समझता !

हम किस से करें बयाँ अपने दिल की बातें यारों,
अब तो कोई भी, किसी की आवाज़ नहीं समझता !

भांप लेते थे लोग कभी चेहरे से ही दिल की बातें,
अब तो कोई भी, किसी के अज़ाब नहीं समझता !

तड़पते घायल को देखते हैं तमाशे की तरह बस,
अब तो कोई भी, किसी की दरकार नहीं समझता !

क्या से क्या हो गयी है ये दुनिया न जाने ,
कि अब तो कोई भी, किसी का प्यार नहीं समझता !

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7 NOV 2023 AT 21:05

Nobody was born with a low self-esteem. Everyone was born believing that they are good enough and beautiful...

... until someone told them the opposite and that made them doubt their worth.

Nobody has the right to make you feel like you're not enough.
Nobody is above you. Don't derive your worth from other people opinions!

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7 NOV 2023 AT 18:48

Some people truly did not deserve to know you, that’s just the facts but you learned from it, you no longer give your energy out so freely in a desperate attempt to connect.
You have standards now good for you.”
Life's lessons taught me not everyone deserves a place in my story.

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7 NOV 2023 AT 17:31

कई ख़्वाब टूट कर बिखर गए,कैसा हर रोज़ तमाशा है।
नम आँखें है, ख़ामोशी है,मन में इक घोर निराशा है।
कहने को एक सवेरा है पर रात दुखों की जारी है॥
यह दर्द बहुत ही भारी है।।
जो आस लगाए बैठा था,वो सपने बनकर छूट गए।
कुछ हाथ मेरे हाथों में थे,वो अपने मुझसे रूठ गए।
अब मैं हूँ, चहारदीवारी है और मन में बस लाचारी है॥
यह दर्द बहुत ही भारी है।।
मैं घर से दूर निकल आया,कुछ खोने को, कुछ पाने को।
कुछ साथी नए बनाए है,इस दुनिया को दिखलाने को।
पर तन्हाई में बैठा हूँ और तकलीफ़ों से यारी है॥
यह दर्द बहुत ही भारी है।।
कई चेहरे मैंने देखे हैं,कुछ हँसते है, कुछ रोते है।
कुछ मुस्काते, कुछ गाते है,कुछ बिल्कुल चुप-चुप होते है।
चेहरों के इन बाज़ारों में, ख़ुशियों की मारा-मारी है॥
यह दर्द बहुत ही भारी है।।
ख़ुशियाँ बिकती है शहरों में,मत ढूँढ़ो इन्हे सवालों में।
जो ढूँढ़ रहा है ख़ुशियों को,लग जाए इन्ही कतारों में।
मैं लगा हुआ हूँ वर्षों से, बस कल अपनी ही बारी है॥
यह दर्द बहुत ही भारी है।।

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7 NOV 2023 AT 17:27

आत्ममुग्धता दबे पाँव आखेट करती है |बड़े- बड़े आखेटक, चूर अपनी कीर्ति गाथाओं में,
अनभिज्ञ इस बात से कि ;
उनका भी हो सकता है आखेट,
बन जाते हैं आखेट आत्ममुग्धता का |
जारी रखते हैं वो आखेट औरों का,अपना हाल अनजाने
आत्ममुग्धता फंदे बिछाती है चुपचाप |
अहं के नुकीले बरछों से भरे गड्ढ़े,अति यशाकांक्षा के पांवों के फंदे,
अतिशय भोग-विलास के पिंजरे,सर्वज्ञता की गले की फांस,
इनसे बचना विरले ही होता है संभव |
आत्ममुग्धता नहीं सजाती अपने शिकार की ट्रॉफी |
मगर शिकार के चेहरे, बोली, हाव-भाव,बर्ताव से झलकता है उसका शिकार होना;
अंधेर नगरी के मायालोक में रहता है,आत्ममुग्ध चौपट राजा ,
रेबड़ी बांटता है अपने में और पूछता है परायों से स्वाद |
आत्ममुग्ध लोगों से आतंकित रहती है दुनिया |
इतिहास गवाह है- आत्ममुग्ध लोगों ने,सबसे ज्यादा की है मानवता की क्षति;
कभी इतिहास बदलने के नाम पर, तो कभी,धर्म, देश, प्रकृति और मानवता को बचाने के नाम पर;
जबकि जरुरी था उनका अपनेआप को आत्ममुग्धता से बचाना |

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