कल्प चाहे अल्प
ये विकल्प थोड़ा अटपटा
भ्रम का कोई क्रम पकड़कर
क्यूं रहा यूं छटपटा
आसमानी बिजलियां जैसे जीभ
चिढाकर चल पड़ी
खिलखिलाकर बादलों से बूंदे
धरती की ओर बड़ी
गीत गाकर चल दिए बादल
कोई सुने कहां फुरसत अभी
ठंडी होती हवाओं ने पर
खत्म की उनकी शिकायते सभी
मौन होता मन का मेंढक
राग है आलापता
अंधेरे में सोकर जागा कीट
उजियारें को झांकता
खोजती आंखें पुरानी धूल बारिश जो धो गई
थककर ओढ़कर चादर
रात चुपचाप सो गई ।
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व्यापार करती सड़के सारी
समय मांगकर
राही को सफर बेचती है
उधारी पर कुछ देर
के लिए मिले
पेड़ जंगल चिड़िया
ये आंखें चाव से देखती है
चुप्पी साधकर
मन जमाने की बातें शुरू खुदसे करता है
बेवक्त सबके साथ यूं ये
वक्त कहां सबको मिलता है?
शहर गांव कस्बे पहर से बदलकर
जोड़ते है यादों में किस्से एक एक कर
धुन पर नाचती उंगलियां
थकी पलके थोड़ी उबासियां
मुस्कुराते यूं कट जाते फिर रास्ते
बातों की मूंगफली के मज़े लेते
पहुंच जाते हैं फिर मुकाम पर हंसते हंसाते।।
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कुबूल कर सवाल मेरे
मासूम से
खामोश से
तेरे बिना मगर
नाराज़ से थोड़े
थोड़े उदास से
साथ होते तेरे
तो नादान से
कभी चंचल स्वभाव से
वो पढ़ लेना चाहते हैं
आंखो के तेरे हर किस्से
बस इसलिए ढूंढते है तुझ ही को
जो भी वक्त आता मेरे हिस्से
एक तेरा आवरण
मेरा उसमे सुकून से रहना
विचारों को कर धीमा
तेरे पास खामोशी से रहना
हथेलियां थामकर तेरी
जैसे सब पा जाती हूं
खोकर समय को बेहिसाब
तेरी राह तकती हूं
बच्चा मन तेरा मुझे इस कदर भाता है
हां, मज़ाक समझती थी मैं
पर सच इस शख्स से
बार बार प्यार हो जाता है
समझती है फिर भी जिद्दी हो जाती हैं
मन की तितलियां उड़कर
बस तेरे पास पहुंच जाती है
प्यारे जादूगर
बस इतना करना
नर्म भीगे इन भावों को सहेज कर रखना
खाली पड़ी तख्ती पर
तस्वीरें कई होंगी
सुन मेरे रंगरेज
वो सब तेरे रंगों से भरी होंगी।
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प्यार परदेश में
प्रीतम जाने किस भेष में
खोजू कहा तुम्हे
आजकल
लगे सब पूछने
श्रृंगार आता नहीं
मैं सादगी में रहती हूं
जब बोल नही पाती तब
कविता में कहती हूं।
जरूरी नही की कोई
मुमताज़ को ताज दे
मगर करे परवाह थोड़ी
प्यार से आवाज़ दे
जो हँसी की लकीरें
मेरे चेहरे से मिटने न दे
जो चिंताओं को मुझमें सिमटने न दे
मेरे तमाम सपने
हकीकत उसे भी लगे
जो मन का हर दर्द
मुझसे कह दे और सुने
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धुंध है
खोज रही किसी
नर्म से भाव को
खुश हो रही हथेलियां
तापकर अलाव को
खोज रही तितलियां मन के वो रास्ते
तय नई कहानियां जहां, किसी अनजाने के वास्ते
सवाल है कई
हैं बेवजह बैचैनियां
शांत सी मैं
जिसे भाने लगी नादानियां
कोतुहल मन का
जाने क्या परखकता है?
होते इस बदलाव से थोड़ा सा डरता है
नए रिश्ते नए लोग नई जिम्मेदारियां होंगी
सुनो!! अगले दिसंबर की तस्वीर थोड़ी अलग होगी।
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इतना आसान भी नहीं था
भले ही विचार कितने भी स्वतंत्र हो
अनजान हाथों को थाम कर
एक शुरुआत कर देना
तमाम उलझनों को किनारे कर
तुम्हारे साथ खड़े होना
ज़िंदगी की होने वाली साझेदारी में
हिचकिचाहट छुपा कर बस खुश दिखते रहना
भीड़ में किसी खास से अचानक मिलते ही
समझदारी को भूल बचपना ओढ़ लेना
पर फिर भी
अब से मन के हर भाव को
करती हूं सहजता से तुम्हें अर्पण
जिसकी साक्ष्य प्रस्तुति करता
हाथों में मेरे, तुम्हारे नाम का यह अलंकरण।
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मैने किरदारों को बदलते देखा
झांकते देखा खुशियों को
मुस्कुराते देखा समय को..
इस बात से वाकिफ कराया उसने मुझे
कि ऊपरवाला कहानियां कमाल की लिखता है।
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अलबेला बादल राह अपनी खोजकर
रखकर थोड़ा धीरज
बूंद बूंद जोड़कर
झांकता है रुककर देखता है
है सखी उसकी बात ये है
वरना धरती पर क्या धरा है
हाल पूछता है
कभी कभी जोर से बोलता है
वियोगी साधु है
इसलिए स्वांग करता है
दिखता नहीं कभी कभी सूरज को ढक देता है
बंधा नहीं बस स्वछंद जीता है
अब जब उसने स्वभाव में दूर रहना सीखा है
धरती भी कम नहीं उसने भी नदी बन बहना सीखा है
वो तपकर बादल होना जानती है
उसे अपना सच्चा दोस्त मानती है
नाराज़ जब होती है
थोड़ी उमस होती है
मुंह बनाती है जीभ चिढ़ाती है
पर बादल को ये बात कहा समझ आती है
पर सफर का बोझ जब पीड़ा बन जाता है
बादल को भी अपना मित्र बहुत याद आता है
भावनाओं और जिम्मेदारी का जब बोझ बढ़ता है
वो अपने रास्ते धरती और ही मोढ़ता है
पिघलकर बारिश हो बेहिसाब बरसता है
मिलकर धरा की माटी से बेबाक महकता है
खुशी मित्रों की हरियाली बन हंसती नज़र आती है
परेशान धरा अबकी थोड़ा शीतल खुदको पाती है
तो ये नोक झोंक नाराज़ होना
धरती का बादल
बादल का धरती होना
फिर भूलकर सब इनका मिलना हर बार
अनोखी इनकी दोस्ती
इसका ही नाम है सावन का त्यौहार।।
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कैद के कुछ अपने रंग है
कैद खुद को दी गई
कैद जो किसी से मिल गई
कभी लगा क्या?
कि बांध कर रख लिया है हवा को हमने
फिर भला क्यों धरा से ये बंधी हुई
उन्मुक्त है नदी चंचलता उसकी रुकी नहीं कभी
पर तय करती रास्ता, जो प्रकृति को लगता सही ।।
जाने कितनी ही
यात्राएं पूरी करती पृथ्वी
समय की कैद में रहकर
फिर बतलाओ
कैद अनुशासन है या नहीं ?
स्वच्छंदता के जोख़िम भरे पड़ावों को
पार करने में
रुकावटों में मिला अनुभव काम आता है
जो जैसा नज़र आए जरूरी नही की हो वही।
अरमान की तिज़ोरी से
कुछ खनकते सिक्के इच्छाओ के निकाल कर
कोशिश करते हैं सब
आज़ादी खरीद लाए थोड़ी थोड़ी
पर हम भूल जाते हैं
पंछी को उड़ान भरने को
आसमान की ही कैद है मिली।
खबरदार अबकी कैद की कमियां गिनाई तो
झांक तू खुद उन्मुक्त विचारों का कैदी है अभी।-
मेरे लिए जीवन है
मात्र संतुलन
भावनाओ और प्रतिक्रियाओं में
आदतों और बदलाव में
सफलता और अभाव में
कैद और स्वछंदता में
विशेष में और आम में
धीरज, सादगी के साथ
आधुनिक विचार में
शांत मन और चंचल स्वभाव में
जीवन... संतुलन इन सब का
बस बना रहे प्रभाव में।
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