सिसक सिसक सिरहाने से, सिलवटें सारी समेट कर
घबराई घंटों घूरती रही,
वो घिर आए वो गरजते रहे घनन घनन कर घुमड़ते रहे
न नींद गई, न भय गया, न रात कटी
करते करते करवटें न कम पड़ी, न बरसात पड़ी
वो गर्म मिज़ाज इस गर्मी में, गर्मा गए हमको भी
अब क्रोध लिए क्या नींद आए
क्या मन माने मनाने पे
घबराए घड़ी घड़ी
अरे! ये क्या…
लो, बारिश आन पड़ी-
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#H0bitual of writting💁