Rishiraj Sharma   (ऋषिराज)
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Joined 23 March 2023


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26 APR AT 11:50

नज़्मों को सलीखा सिखाया हमने,
जवाब-ए-दिल हर बार बताया नहीं करते!

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10 APR AT 12:53

लेता हूं नाम तेरा हर शायरी में

कुछ समेत के ही रखा है ख़ुद से
डरता हूं खोने से दिल-ए-कायरी में

वो ख़त्म कर देते है बाते कुछ ही लफ्ज़ में
भला क्या करेंगे जाकर उनकी मुशायरी में

वो हक़ से भूल जाए 'राज' किरदार हमारा
आज भी पहला पन्ना है उनके नाम से डायरी में

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1 APR AT 19:29

पत्थर क्या जाने क़िस्मत अपनी,
कहीं है ढांचा विवादित, तो कहीं वो स्वयं श्री राम है

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31 MAR AT 12:36

ख़ुद को समझे वह बे-कसूर,

कैसे जाएं 'राज' मिलने उनसे
उनका शहर है बड़ा ही दूर

चाहे पढ़ ले हम कितने ही आषाढ़ अपने
उनकी एक नज़्म से ही है हम मशहूर!

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29 MAR AT 10:01

सबका है आसमां,
किसी एक की जागीर तो नहीं,
गर किसी पेड़ पर है बसेरा किसी का
मिलेंगे लाखों
अकेला बस वही पेड़ तो नहीं!

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27 MAR AT 14:06

जो लगी थी तौमत हम पर अच्छी होती अगर
मोहब्बत जो तुझ्से सच्ची होती अगर

लेते हम भी एक सांस गहरी सी
मुझ में जिंदगी बची होती अगर

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21 MAR AT 21:19

और तजुर्बेमंद हम नहीं,
ग़म-ए-शिद्दत है लाखों
फिर भी की ग़म नहीं...

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18 MAR AT 18:41

मुझे तेरा चेहरा अब याद रहता है,
मैं किसी और को अब देखता ही नहीं...

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15 MAR AT 11:03

तुम्हारे हर सवाल का
मेरा एक ही जवाब होगा
जिसमे नज़र आएं तुम
वही मेरा पसंदीदा ख़्वाब होगा!

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13 MAR AT 10:47


अपने अंतर्मन का सैलाब देखना,
कुछ ही सही, मेरी आंखों से भी ये ख़्वाब देखना!

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