तस्वीर से तकदीर जोड़ दिया है,
मुस्कुरा कर रास्ता मोड दिया है,
आंखें बंद करु तो वो दिखे, वरना
हमने भी इश्क़ का भरोसा छोड़ दिया है।-
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मेरी रूह को आदत है तड़प की,
अब उस शहर में कभी भी ना जाना होगा।
चलो जा रहा बड़ी दूर तुमसे,
अब कभी नज़र से नज़र भी ना मिलाना होगा।-
क़दम बढ़ाए तो बढ़ाए भी कैसे,
नज़र मिलाए तो मिलाएं भी कैसे,
हम कतार में थे और कतार में ही रह गए,
हाल सुनाए तो सुनाए भी कैसे।।-
बेड़ियां निकाली,
हथकड़ियां खोली,
मन भर कर मुकुराने दिया, कि
जो जा रहे उन्हें जाने दिया।
रिहाई की ढोल,
संगीत की बोल,
आसमा के छांव,
खुशी की नाव,
लहरों की दमक,
चांद की चमक, में
मन भर कर मुकुराने दिया, कि
जो जा रहे उन्हें जाने दिया।
ना रोक, ना टोक
ना डर, ना दहशत
ना रिश्ते, ना नाते
ना प्रेम, ना बंधन
ना घाव, ना दबाव, बस
मन भर कर मुकुराने दिया, कि
जो जा रहे उन्हें जाने दिया।-
रोक ना सके मन के लहू को, जो
लकीरें छिटक गई मुठ्ठी खोलकर।
वो कही दूर निकल गए हमसे, की
सुनो, तुम काबिल नहीं ये बोलकर।-
कश्मकश में जिंदगी क्या मांगू मै, जो
वो मोहब्बत पर अक्सर सवाल उठाते हैं।
बदलते दिख रहा अगर मैं उनकी नज़रों में,
तो क्यूं नहीं निगाहें हम उनसे छिपाते है।-
हवाओं की साजिश समझ,
चिराग़ जले और जले ही जाए।
तक़दीर से गुफ्तगू हो रही, की
हम जो चले तो बस चले ही जाए।-
मोहब्बत में कुछ यूं सवर रहे हैं,
हर शाम बस इस कदर बिखर रहे हैं,
ये कैसी किस्मत है, इश्क़ में मेरी, की
तेरी तस्वीर के सहारे दिन गुजर रहे हैं।-
हां वहीं है प्रेम का प्रताप प्रिये
सामान्य है रुख हवा के, तो
फ़िर मन को क्यूं इतना विलाप प्रिये।
न अधीर उत्तेजित दशा–दिशा, तो
फिर हमें क्यूं इतना संताप प्रिये।
अलंकृत अमर बने जो प्रित कहानी,
हां वहीं है प्रेम का प्रताप प्रिये।।
विषाद रहे न रहे गंभीर,
हो अतुल्य अनुराग का जाप प्रिये।
अंतरमन का शुद्ध पुखराज,
रहे सुगन्धित स्नेह निष्पाप प्रिये।
तन – मन की अभेद कहानी,
हां वहीं है प्रेम का प्रताप प्रिये।।
आगे न पीछे, समरूप रहे,
प्रसन्न प्रणय का साथ प्रिये।
सरस लफ्ज़ से पहल रहे,
आतुक मिलन की बात प्रिये।
नीरसता में जो आए रस की कहानी,
हां वहीं है प्रेम का प्रताप प्रिये।।-
मैं खामोश हूं अपनी तक़दीर पर,
ना आशु है अब बहाने को।
मैं मुसाफ़िर था, उन गालियों में,
ना मोहब्बत है अब दिखाने को।-