Rishi Sahu   (Rishi (अनास्तिक) Sahu)
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Joined 15 August 2017


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Joined 15 August 2017
9 AUG 2020 AT 12:07

दिल की दरख़्तें खाली रह जानी ही हैं
दुनिया को करनी अपनी मनमानी ही है
मुझको मालूम है तुमने छिपा के रखा है ,
तेरे मन में इक अनकही कहानी भी है
कहानियों को मुकम्मल ठौर दिया करो,
सच कहता हूं दोस्त
"ख़्वाब देखा करो"

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8 AUG 2020 AT 17:14

"पुरुष हमेशा अपनी पसंदीदा स्त्री को खोता रहा है और स्त्री कभी अपने पसंदीदा पुरुष को पा नहीं सकी है, जीवन फिर भी शाश्वत चलता रहा है ,यही शक्ति का प्रतीक है और शक्ति हीनता की पराकाष्ठा भी!"

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1 AUG 2020 AT 15:39

इश्क है ,तो बता दिया कर,
तड़प है ,तो दिखा दिया कर ।
मरना तो तेरा तय है , रे आशिक!
बुझते -बुझते, मशालों से चिंगारियां ,
उड़ा दिया कर।

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1 AUG 2020 AT 14:49

A Paradoxical Girl

So full yet so void
Glimpse of magic yet so real!
The brightest vibe of the darkest aura.
So serene yet so blaring!
Softest pitch of the biggest daring.
A blooming one in the glooming one.
An assasin angel !
So tranquil yet so desperate.
An opaque piece of glass !
So firm yet so fragile
The coldest piece of fire.
A shallow ocean!
So different yet so monotonous.
A sneaky verse of the finest poetry!
So sombre yet so vibrant.



A girl "easy to fall ,hard to love"!!

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19 JAN 2018 AT 11:07

देखो कौन ये आधी रात को पीकर घर आया है,
जरा पता करो दोस्त क्या फिर से कोई रिज़ल्ट आया है।😁🍺

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5 JAN 2018 AT 14:34

"यूं तो पारा भी गिरा है मेरे शहर में,
पर सिहरन आज भी तेरे छोड़ जाने की है।
सर्द हवाएं भला क्या बिगाड़ लेंगी मेरा,
कि देखा है मैंने आग रिश्तों की ठंडी पड़ते।"

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4 NOV 2017 AT 10:25

सीमाएं होती हैं इंसान की नफरतों का उग्र यथार्थ,
और
सैनिक है मानव लिप्सा का निरीह प्रहरी नि:स्वार्थ।

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29 OCT 2017 AT 8:11

जो निकला किस्सा छोटा सा ,पुरानी गली से,
अख़बार में छप , सनसनीखेज दास्तान हो गया।

इन्सान तो अब खैर ज्यादा दिखते नहीं,
मेरा आधा शहर हिन्दू और आधा मुसलमान हो गया।

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28 OCT 2017 AT 8:48

"काश फिर से हो चले जिन्दगी ,बचपन सी आसान,
एक नदी,एक मकान,एक पहाड़ अौर एक सा इन्सान ।"

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25 OCT 2017 AT 20:05

मेरी सफलता को मत आंक मेरे दायरा ए मकान से,
मुझे मेहनतों का सबब मिला है मेरी मां की मुस्कान से।

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